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पृष्ठ:गो-दान.djvu/१९५

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गो-दान
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रही थी, वह आज उसके सिर पर आ गयी। खन्ना ने आज जैसे उससे नाता तोड़ लिया, जैसे उसे घर से खदेड़कर द्वार बन्द कर लिया। जो रूप का बाज़ार लगाकर बैठती है, जिसकी परछाईं भी वह अपने ऊपर पड़ने देना नहीं चाहती...वह उस पर परोक्ष रूप से शासन करे। यह न होगा। खन्ना उसके पति हैं, उन्हें उसको समझाने बुझाने का अधिकार है, उनकी मार को भी वह शिरोधार्य कर सकती है। पर मालती का शासन! असम्भव! मगर बच्चे का ज्वर जब तक शान्त न हो जाय, वह हिल नहीं सकती। आत्माभिमान को भी कर्तव्य के सामने सिर झुकाना पड़ेगा।

दूसरे दिन बच्चे का ज्वर उतर गया था। गोविन्दी ने एक ताँगा मँगवाया और घर से निकली। जहाँ उसका इतना अनादर है, वहाँ अब वह नहीं रह सकती। आघात इतना कठोर था कि बच्चों का मोह भी टूट गया था। उनके प्रति उसका जो धर्म था, उसे वह पूरा कर चुकी है। शेष जो कुछ है वह खन्ना का धर्म है। हाँ, गोद के बालक को वह किसी तरह नहीं छोड़ सकती। वह उसकी जान के साथ है। और इस घर से वह केवल अपने प्राण लेकर निकलेगी। और कोई चीज़ उसकी नहीं है। इन्हें यह दावा है कि वह उसका पालन करते हैं। गोविन्दी दिखा देगी कि वह उनके आश्रय से निकलकर भी जिन्दा रह सकती है। तीनों बच्चे उस समय खेलने गये थे। गोविन्दी का मन हुआ, एक बार उन्हें प्यार कर ले; मगर वह कहीं भागी तो नहीं जाती। बच्चों को उससे प्रेम होगा, तो उसके पास आयेंगे, उसके घर में खेलेंगे। वह जब ज़रूरत समझेगी, खुद बच्चों को देख आया करेगी। केवल खन्ना का आश्रय नहीं लेना चाहती।

साँझ हो गयी थी। पार्क में रौनक़ थी। लोग हरी घास पर लेटे हवा का आनंद लूट रहे थे। गोविन्दी हज़रतगंज होती हुई चिड़ियाघर की तरफ़ मुड़ी ही थी कि कार पर मालती और खन्ना सामने से आते हुए दिखायी दिये। उसे मालूम हुआ, खन्ना ने उसकी तरफ़ इशारा करके कुछ कहा और मालती मुस्करायी। नहीं, शायद यह उसका भ्रम हो। खन्ना मालती से उसकी निन्दा न करेंगे; मगर कितनी बेशर्म है। सुना है इसकी अच्छी प्रैक्टिस है, घर की भी सम्पन्न है, फिर भी यों अपने को बेचती फिरती है। न जाने क्यों ब्याह नहीं कर लेती; लेकिन उससे ब्याह करेगा ही कौन? नहीं, यह बात नहीं। पुरुषों में भी ऐसे बहुत हो गये हैं, जो उसे पाकर अपने को धन्य मानेंगे; लेकिन मालती खुद तो किसी को पसन्द करे। और ब्याज में कौन-सा सुख रखा हुआ है। बहुत अच्छा करती है, जो ब्याह नहीं करती। अभी सब उसके गुलाम हैं। तब वह एक की लौंडी होकर रह जायगी। बहुत अच्छा कर रही है। अभी तो यह महाशय भी उसके तलवे चाटते हैं। कहीं इनसे व्याह कर ले, तो उस पर शासन करने लगें; मगर इनसे वह क्यों ब्याह करेगी? और समाज में दो-चार ऐसी स्त्रियाँ बनी रहें, तो अच्छा; पुरुषों के कान तो गर्म करती रहें।

आज गोविन्दी के मन में मालती के प्रति बड़ी सहानुभूति उत्पन्न हुई। वह मालती पर आक्षेष करके उसके साथ अन्याय कर रही है। क्या मेरी दशा को देखकर उसकी