हुआ,खिचड़ी डाढ़ी,और काना। उसकी लड़की बिदा हो रही थी। पांँच रुपये की उसे बड़ी ज़रूरत थी। गोबर ने एक आना रुपया सूद पर रुपये दे दिये।
अलादीन ने धन्यवाद देते हुए कहा--भैया,अब बाल-बच्चों को बुला लो। कब तक हाथ से ठोंकते रहोगे।
गोबर ने शहर के खर्च का रोना रोया--थोड़ी आमदनी में गृहस्थी कैसे चलेगी?
अलादीन बीड़ी जलाता हुआ बोला--खरच अल्लाह देगा भैया! सोचो,कितना आराम मिलेगा। मैं तो कहता हूँ,जितना तुम अकेले खरच करते हो,उसी में गृहस्थी चल जायगी। औरत के हाथ में बड़ी बरक्कत होती है। खुदा क़सम,जब मैं अकेला यहाँ रहता था,तो चाहे कितना ही कमाऊँ खा-पी सब बराबर। बीड़ी-तमाखू को भी पैसा न रहता। उस पर हैरानी। थके-माँदे आओ,तो घोड़े को खिलाओ और टहलाओ। फिर नानबाई की दुकान पर दौड़ो। नाक में दम आ गया। जब से घरवाली आ गयी है,उसी कमाई में उसकी रोटियाँ भी निकल आती हैं और आराम भी मिलता है। आखिर आदमी आराम के लिए ही तो कमाता है। जब जान खपाकर भी आराम न मिला,तो जिन्दगी ही गारत हो गयी। मैं तो कहता हूँ,तुम्हारी कमाई बढ़ जायगी भैया! जितनी देर में आलू और मटर उबालते हो,उतनी देर में दो-चार प्याले चाय बेच लोगे। अब चाय बारहों मास चलती है! रात को लेटोगे तो घरवाली पाँव दबायेगी। सारी थकान मिट जायगी।
यह बात गोबर के मन में बैठ गयी। जी उचाट हो गया। अब तो वह झुनिया को लाकर ही रहेगा। आलू चूल्हे पर चढ़े रह गये,और उसने घर चलने की तैयारी कर दी;मगर याद आया कि होली आ रही है। इसलिए होली का सामान भी लेता चले। कृपण लोगों में उत्सवों पर दिल खोलकर खर्च करने की जो एक प्रवृत्ति होती है,वह उसमें भी सजग हो गयी। आखिर इसी दिन के लिए तो कौड़ी-कौड़ी जोड़ रहा था। वह माँ,बहनों और झुनिया सबके लिए एक-एक जोड़ी साड़ी ले जायगा। होरी के लिए एक धोती और एक चादर। सोना के लिए तेल की शीशी ले जायगा,और एक जोड़ा चप्पल। रूपा के लिए जापानी चूड़ियाँ और झुनिया के लिए एक पिटारी,जिसमें तेल,सिन्दूर और आईना होगा। बच्चे के लिए टोप और फ्राक जो बाजार में वना बनाया मिलता है। उसने रुपये निकाले और बाजार चला। दोपहर तक सारी चीजें आ गयीं। बिस्तर भी बँध गया,मुहल्लेवालों को खबर हो गयी,गोबर घर जा रहा है। कई मर्द-औरतें उसे बिदा करने आये। गोबर ने उन्हें अपना घर सौंपते हुए कहा--तुम्हीं लोगों पर छोड़े जाता हूँ। भगवान ने चाहा तो होली के दूसरे दिन लौटूंँगा।
एक युवती ने मुस्कराकर कहा--मेहरिया को बिना लिये न आना,नहीं घर में न घुसने पाओगे।
दूसरी प्रौढ़ा ने शिक्षा दी-- हाँ,और क्या,बहुत दिनों तक चूल्हा फंँक चुके। ठिकाने से रोटी तो मिलेगी!