गोदान | १९ |
हाथों का खिलौना बनते हैं।दुनिया समझती है, हम बड़े सुखी हैं।हमारे पास इलाक़े,महल, सवारियाँ,नौकर-चाकर,कर्ज, वेश्याएँ,क्या नहीं हैं, लेकिन जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं,वह और चाहे कुछ हो,आदमी नहीं है।जिसे दुश्मन के भय के मारे रात को नींद न आती हो,जिसके दुःख पर सब हँसें और रोनेवाला कोई न हो,जिसकी चोटी दूसरों के पैरों के नीचे दबी हो,जो भोग-विलास के नशे में अपने को बिलकुल भूल गया हो,जो हुक्काम के तलवे चाटता हो और अपने अधीनों का खून चूसता हो, उसे मैं सुखी नहीं कहता। वह तो संसार का सबसे अभागा प्राणी है। साहब शिकार खेलने आयें या दौरे पर, मेरा कर्तव्य है कि उनकी दुम के पीछे लगा रहूँ। उनकी भौंहों पर शिकन पड़ी और हमारे प्राण सूखे। उन्हें प्रसन्न करने के लिए हम क्या नहीं करते। मगर वह पचड़ा सुनाने लगूं तो शायद तुम्हें विश्वास न आये। डालियों और रिश्वतों तक तो खैर गनीमत है, हम सिजदे करने को भी तैयार रहते हैं। मुफ्तखोरी ने हमें अपंग बना दिया है,हमें अपने पुरुपार्थ पर लेशमात्र भी विश्वास नहीं, केवल अफ़सरों के सामने दुम हिला-हिलाकर किसी तरह उनके कृपापात्र बने रहना और उनकी सहायता से अपनी प्रजा पर आतंक जमाना ही हमारा उद्यम है। पिछलगुओं की खुशामद ने हमें इतना अभिमानी और तुनकमिजाज़ बना दिया है कि हममें शील, विनय और सेवा का लोप हो गया है। मैं तो कभी-कभी सोचता हूँ कि अगर सरकार हमारे इलाके छीनकर हमें अपनी रोज़ी के लिए मेहनत करना सिखा दे तो हमारे साथ महान उपकार करे, और यह तो निश्चय है कि अब सरकार भी हमारी रक्षा न करेगी। हमसे अब उसका कोई स्वार्थ नहीं निकलता। लक्षण कह रहे है कि बहुत जल्द हमारे वर्ग की हस्ती मिट जानेवाली है। मैं उस दिन का स्वागत करने को तैयार बैठा हूँ। ईश्वर वह दिन जल्द लाये। वह हमारे उद्धार का दिन होगा। हम परिस्थितियों के शिकार बने हुए हैं। यह परिस्थिति ही हमारा सर्वनाश कर रही है और जब तक संपत्ति की यह बेड़ी हमारे पैरों से न निकलेगी, जव तक यह अभिशाप हमारे सिर पर मंडराता रहेगा, हम मानवता का वह पद न पा सकेंगे जिस पर पहुँचना ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य है।
राय साहब ने फिर गिलौरी-दान निकाला और कई गिलौरियाँ निकालकर मुंहमें भर लीं। कुछ और कहने वाले थे कि एक चपरासी ने आकर कहा--सरकार, बेगारों ने काम करने से इनकार कर दिया है। कहते हैं,जब तक हमें खाने को न मिलेगा हम काम न करेंगे। हमने धमकाया,तो सब काम छोड़कर अलग हो गये।
राय साहब के माथे पर बल पड़ गये। आँखें निकालकर बोले-चलो,मैं इन दुष्टों को ठीक करता हूँ। जब कभी खाने को नहीं दिया,तो आज यह नयी बात क्यों? एक आने रोज के हिसाब से मजूरी मिलेगी,जो हमेशा मिलती रही है;और इस मजूरी पर उन्हें काम करना होगा,सीधे करें या टेढ़े।
फिर होरी की ओर देखकर बोले-तुम अब जाओ होरी, अपनी तैयारी करो। जो बात मैंने कही है,उसका खयाल रखना। तुम्हारे गाँव से मुझे कम-से-कम पाँच सौ की आशा है।