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पृष्ठ:गो-दान.djvu/२४४

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गो-दान
 

'हाँ,आये तो थे।'

'कुछ कहा,कहाँ जा रहे हैं?'

'यह तो कुछ नहीं कहा।'

'जाने कहाँ डुबकी लगा गये। मैं चारों तरफ घूम आयी। आपने व्यायामशाला के लिए कितना दिया?'

खन्ना ने अपराधी-स्वर में कहा-मैंने इस मुआमले को समझा ही नहीं।

मालती ने बड़ी-बड़ी आँखों से उन्हें तरेरा,मानों सोच रही हो कि उन पर दया करे या रोष।

'इसमें समझने की क्या बात थी,और समझ लेते आगे-पीछे,इस वक्त तो कुछ देने की बात थी। मैंने मेहता को ठेलकर यहाँ भेजा था। बेचारे डर रहे थे कि आप न जाने क्या जवाब दें। आपकी इस कंजूसी का क्या फल होगा,आप जानते हैं? यहाँ के व्यापारी समाज से कुछ न मिलेगा। आपने शायद मुझे अपमानित करने का निश्चय कर लिया है। सवकी सलाह थी कि लेडी विलसन बुनियाद रखें। मैंने गोविन्दी देवी का पक्ष लिया और लड़कर सब को राजी किया और अब आप फ़रमाते हैं,आपने इस मुआमले को समझा ही नहीं। आप बैंकिंग की गुत्थियाँ समझते हैं। पर इतनी मोटी वात आप की समझ में न आयी। इसका अर्थ इसके सिवा और कुछ नहीं है,कि तुम मुझे लज्जित करना चाहते हो। अच्छी बात है,यही सही?'

मालती का मुख लाल हो गया था। खन्ना घबराये, हेकड़ी जाती रही;पर इसके साथ ही उन्हें यह भी मालूम हुआ कि अगर वह काँटों में फंस गये हैं,तो मालती दलदल में फंस गयी है;अगर उनकी थैलियों पर संकट आ पड़ा है,तो मालती की प्रतिष्ठा पर संकट आ पड़ा है,जो थैलियों से ज्यादा मूल्यवान है। तब उनका मन मालती की दुरवस्था का आनन्द क्यों न उठाये? उन्होंने मालती को अरदव में डाल दिया था। और यद्यपि वह उमे रुष्ट कर देने का साहम खो चुके थे;पर दो-चार खरी-खरी बातें कह सुनाने का अवसर पाकर छोड़ना न चाहते थे। यह भी दिखा देना चाहते थे कि मैं निरा भोंदू नहीं हूँ। उसका रास्ता रोककर बोले--तुम मुझपर इतनी कृपालु हो गयी हो,इस पर मुझे आश्चर्य हो रहा है मालती!

मालती ने भवें सिकोड़कर कहा-मैं इसका आशय नहीं समझी।

'क्या अव मेरे साथ तुम्हारा वही बर्ताव है,जो कुछ दिन पहले था?'

'मैं तो उसमें कोई अन्तर नहीं देखती।'

'लेकिन मैं तो आकाश-पाताल का अन्तर देखता हूँ।'

'अच्छा मान लो,तुम्हारा अनुमान ठीक है,तो फिर? मैं तुससे एक शुभ-कार्य में सहायता माँगने आयी हूँ,अपने व्यवहार की परीक्षा देने नहीं आयी हूँ। और अगर तुम समझते हो,कुछ चन्दा देकर तुम यश और धन्यवाद के सिवा कुछ और पा सकते हो,तो तुम भ्रम में हो।'

खन्ना परास्त हो गये। वह ऐसे सकरे कोने में फंस गये थे,जहाँ इधर-उधर हिलने