गोदान | २७५ |
नोहरी ने कातर स्वर में कहा--ऐसे ही तुम लोगों से मिलने चली आयी। बिटिया का ब्याह कब तक है ?
धनिया सन्दिग्ध भाव से बोली--भगवान के अधीन है, जब हो जाय।
'मैंने तो सुना, इसी सहालग में होगा। तिथि ठीक हो गयी है ?'
'हाँ तिथि तो ठीक हो गयी है।'
'मुझे भी नेवता देना।'
'तुम्हारी तो लड़की है, नेवता कैसा ?'
'दहेज का सामान तो मँगवा लिया होगा। जरा मैं भी देखूँ।'
धनिया असमंजस में पड़ी, क्या कहे। होरी ने उसे सँभाला--अभी तो कोई सामान नहीं मॅगवाया है, और सामान क्या करना है, कुस-कन्या तो देना है।
नोहरी ने अविश्वास-भरी आँखों से देखा--कुस-कन्या क्यों दोग महतो, पहली बेटी है, दिल खोलकर करो।
(होरी हँसा; मानो कह रहा हो, तुम्हें चारों ओर हग दिखायी देता होगा; यहाँ तो सूखा ही पड़ा हुआ है।)
'रुपए-पैसे की तंगी है, क्या दिल खोलकर करूँ। तुमसे कौन परदा है।'
'बेटा कमाता है, तुम कमाते हो; फि. भी रुपाए-पैसे की तंगी ? किसे विश्वास आयेगा।'
'बेटा ही लायक होता, तो फिर काहे को रोना था। चिट्ठी-पत्नर तक भेजता नहीं, रुपए क्या भेजेगा। यह दूसरा साल है, एक चिट्ठी नहीं।'
इतने में सोना बैलों के चारे के लिए हरियाली का एक गट्ठा सिर पर लिये, यौवन को अपने अंचल से चुराती, बालिका-सी सरल, आयी और गट्ठा वहीं पटककर अन्दर चली गयी।
नोहरी ने कहा--लड़की तो खूब सयानी हो गयी है।
धनिया बोली--लड़की की बाढ़ रेंड की बाढ़ है। नहीं है अभी के दिन की ! 'वर तो ठीक हो गया है न ?'
'हाँ, वर तो ठीक है। रुपए का बन्दोबस्त हो गया, तो इसी महीने में याज कर देंगे।
नोहरी दिल की ओछी थी। इधर उसने जो थोड़े-से रुपए जोड़े थे, वे उसके पेट में उछल रहे थे; अगर वह सोना के याज के लिए कुछ रुपए दे दे, तो कितना यश मिलेगा। सारे गाँव में उसकी चर्चा हो जायगी। लोग चकित होकर कहेंगे, नोहरी ने इतने रुपए दे दिए। बड़ी देवी है। होरी और धनिया दोनों घर-घर उसका बखान करते फिरेंगे। गाँव में उसका मान-सम्मान कितना बढ़ जायगा। वह उँगली दिखानेवालों का मुंँह सी देगी। फिर किसकी हिम्मत है, जो उस पर हँसे, या उस पर आवाजें कसे। अभी सारा गाँव उसका दुश्मन है। तब सारा गाँव उसका हितैपी हो जायगा। इम कल्पना से उसकी मुद्रा खिल गयी।
'थोड़े-बहुत से काम चलता हो, तो मुझसे लो; जब हाथ में रुपए आ जायँ तो दे देना।'
होरी और धनिया दोनों ही ने उसकी ओर देखा। नहीं, नोहरी दिल्लगी नहीं कर