गोदान | २९१ |
पक्ष और विपक्ष के सभी पहलुओं पर विचार करके उन्होंने यही नतीजा निकाला कि इस परिस्थिति में मेहता ही से उन्हें प्रकाश मिल सकता है।
डाक्टर मेहता को काम करने का नशा था। आधी रात को सोते थे और घड़ी रात रहे उठ जाते थे। कैसा भी काम हो, उसके लिए वह कहीं-न-कहीं से समय निकाल लेते थे। हाकी खेलना हो या यूनिवर्सिटी डिवेट, ग्राम्य संगठन हो या किसी शादी का नैवेद्य, सभी कामों के लिए उनके पास लगन थी और समय था। वह पत्रों में लेख भी लिखने थे और कई साल से एक वृहद् दर्शन-ग्रन्थ लिख रहे थे, जो अब समाप्त होनेवाला था। इस वक्त भी वह एक वैज्ञानिक खेल ही खेल रहे थे। अपने बागीचे में बैठे हुए पौधों पर विद्युत-संचार-क्रिया की परीक्षा कर रहे थे। उन्होंने हाल में एक विज्ञान-परिषद् में यह सिद्ध किया था कि फसलें बिजली के ज़ोर से बहुत थोड़े समय में पैदा की जा सकती हैं, उनकी पैदावार बढ़ायी जा सकती है और बेफ़स्ल की चीजें भी उपजायी जा सकती हैं। आज-कल सबेरे के दो तीन घंटे वह इन्हीं परीक्षाओं में लगाया करते थे।
मिस्टर खन्ना की कथा सुनकर उन्होंने कठोर मुद्रा से उनकी ओर देखकर कहा--क्या यह ज़रूरी था कि ड्यूटी लग जाने से मजूरों का वेतन घटा दिया जाय ? आपको सरकार से शिका़यत करनी चाहिए थी। अगर सरकार ने नहीं सुना तो उसका दण्ड मजूरों को क्यों दिया जाय ? क्या आपका विचार है कि मजूरों को इतनी मजूरी दी जाती है कि उसमें चौथाई कम कर देने से मजूरों को कप्ट नहीं होगा। आपके मजूर बिलों में रहते हैं--गंदे बदबूदार बिलों में--जहाँ आप एक मिनट भी रह जायँ, तो आपको के हो जाय। कपड़े जो वह पहनते हैं, उनसे आप अपने जूते भी न पोछेगे। खाना जो वह खाते हैं, वह आपका कुत्ता भी न खायेगा। मैंने उनके जीवन में भाग लिया है। आप उनकी रोटियाँ छीनकर अपने हिस्सेदारों का पेट भरना चाहते हैं....
खन्ना ने अधीर होकर कहा--लेकिन हमारे सभी हिस्सेदार तो धनी नहीं हैं। कितनों ही ने अपना सर्वस्व इसी मिल को भेंट कर दिया है और इसके नफ़े के सिवा उनके जीवन का कोई आधार नहीं है।
मेहता ने इस भाव से जवाब दिया, जैसे इस दलील का उनकी नज़रों में कोई मूल्य नहीं है--(जो आदमी किसी व्यापार में हिस्सा लेता है, वह इतना दरिद्र नहीं होता कि इसके नफ़े ही को जीवन का आधार समझे। हो सकता है कि नफ़ा कम मिलने पर उसे अपना एक नौकर कम कर देना पड़े या उसके मक्खन और फलों का बिल कम हो जाय; लेकिन वह नंगा या भूखा न रहेगा। जो अपनी जान खपाते हैं, उनका हक़ उन लोगों से ज्यादा है, जो केवल रुपया लगाते हैं।)
यही बात पंडित ओंकारनाथ ने कही थी। मिर्जा़ खुर्शद ने भी यही सलाह दी थी। यहाँ तक कि गोविन्दी ने भी मजूरों ही का पक्ष लिया था; पर खन्नाजी ने उन लोगों की परवाह न की थी, लेकिन मेहता के मुंँह से वही बात सुनकर वह प्रभावित हो गये। ओंकारनाथ को वह स्वार्थी समझते थे, मिर्जा़ खुर्शद को गैरजिम्मेदार और गोविन्दी को अयोग्य। मेहता की बात में चरित्र, अध्ययन और सद्भाव की शक्ति थी। :