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गोदान
४३
 

धनिया ने पति की ओर विजयी आँखों से देखा,मानो कह रही हो-लो अब तो मानोगे।

{{Gap}]दातादीन से बोली- नहीं महाराज,बाहर क्या बाँधेगे, भगवान् दें तो इसी आँगन में तीन गायें और बॅध सकती है।

सारा गाँव गाय देखने आया। नहीं आये तो सोभा और हीरा जो अपने सगे भाई थे। होरी के हृदय में भाइयों के लिए अब भी कोमल स्थान था। वह दोनों आकर देख लेते और प्रसन्न हो जाते तो उसकी मनोकामना पूरी हो जाती। साँझ हो गयी। दोनों पुर लेकर लौट आये। इसी द्वार से निकले,पर पूछा कुछ नहीं।

होरी ने डरते-डरते धनिया से कहा--न सोभा आया, न हीरा। सुना न होगा?

धनिया बोली-तो यहाँ कौन उन्हें बुलाने जाता है।

'तू बात तो समझती नहीं। लड़ने को तैयार रहती है। भगवान् ने जब यह दिन दिखाया है,तो हमें सिर झुकाकर चलना चाहिए। आदमी को अपने सगों के मुंह से अपनी भलाई-बुराई सुनने की जितनी लालसा होती है,बाहरवालों के मुंह से नहीं। फिर अपने भाई लाख बुरे हों,हैं तो अपने भाई ही। अपने हिस्से-बखरे के लिए सभी लड़ते हैं,पर इससे खून थोड़े ही बट जाता है। दोनों को बुलाकर दिखा देना चाहिए। नहीं कहेंगे गाय लाये,हमसे कहा तक नहीं।'

धनिया ने नाक सिकोड़कर कहा-मैंने तुमसे सौ बार हजार बार कह दिया मेरे मुंह पर भाइयों का बखान न किया करो,उनका नाम सुनकर मेरी देह में आग लग जाती है। सारे गाँव ने सुना,क्या उन्होंने न सुना होगा? कुछ इतनी दूर भी तो नहीं रहते। सारा गाँव देखने आया,उन्हीं के पावों में मेंहदी लगी हुई थी;मगर आये कैसे? जलन हो रही होगी कि इसके घर गाय आ गयी। छाती फटी जाती होगी।

दिया-बत्ती का समय आ गया था। धनिया ने जाकर देखा,तो बोतल में मिट्टी का तेल न था। बोतल उठा कर तेल लाने चली गयी। पैसे होते,तो रूपा को भेजती,उधार लाना था, कुछ मुंह देखी कहेगी;कुछ लल्लो-चप्पो करेगी,तभी तो तेल उधार मिलेगा।

होरी ने रूपा को बुलाकर प्यार से गोद में बैठाया और कहा-जरा जाकर देख,हीरा काका आ गये हैं कि नहीं। सोभा काका को भी देखती आना। कहना,दादा ने तुम्हें बुलाया है। न आये,हाथ पकड़कर खींच लाना।

रूपा ठुनककर बोली-छोटी काकी मुझे डाँटती है।

'काकी के पास क्या करने जायगी। फिर सोभा-बहू तो तुझे प्यार करती है?'

'सोभा काका मुझे चिढ़ाते हैं,कहते हैं...मैं न कहूँगी।'

'क्या कहते हैं,बता?'

'चिढ़ाते हैं।'

'क्या कहकर चिढ़ाते हैं?'

'कहते हैं,तेरे लिए मूस पकड़ रखा है।ले जा, भूनकर खा ले।'