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पृष्ठ:गो-दान.djvu/४६

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गोदान
 

होरी के अन्तस्तल में गुदगुदी हुई।

'तू कहती नहीं,पहले तुम खालो,तो मै खाऊँगी।'

'अम्माँ मने करती है। कहती हैं उन लोगों के घर न जाया करो।'

'तू अम्माँ की बेटी है कि दादा की?'

रूपा ने उसके गले में हाथ डालकर कहा-अम्माँ की, और हँसने लगी।

'तो फिर मेरी गोद से उतर जा। आज मै तुझे अपनी थाली में न खिलाऊँगा।'

घर में एक ही फूल की थाली थी,होरी उसी थाली में खाता था। थाली में खाने का गौरव पान के लिए रूपा होरी के साथ खाती थी। इस गौरव का परित्याग कैसे करे? हुमककर बोली--अच्छा,तुम्हारी।

'तो फिर मेरा कहना मानेगी कि अम्माँ का?'

'तुम्हारा।'

'तो जाकर हीरा और सोभा को खींच ला।'

'और जो अम्माँ बिगड़ें।'

{{gap}]'अम्माँ से कहने कौन जायगा।'

रूपा कूदती हुई हीरा के घर चली। द्वेप का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फंसाता है। छोर्टी मछलियाँ या तो उसमें फंसती ही नहीं या तुरन्त निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जाल क्रीड़ा की वस्तु है,भय की नहीं। भाइयों से होरी की बोलचाल बन्द थी;पर रूपा दोनों घरों में आती-जाती थी। बच्चों से क्या बैर!

लेकिन रूपा घर से निकली ही थी कि धनिया तेल लिए मिल गयी। उसने पूछासाँझ की बेला कहाँ जाती है, चल घर। रूपा माँ को प्रसन्न करने के प्रलोभन को न रोक सकी।

धनिया ने डाँटा-चल घर,किसी को बुलाने नहीं जाना है।

रूपा का हाथ पकड़े हुए वह घर लायी और होरी से बोली--मैने तुमसे हजार बार कह दिया,मेरे लड़कों को किसी के घर न भेजा करो। किसी ने कुछ कर-करा दिया,तो मैं तुम्हें लेकर चाटूंगी? ऐसा ही बड़ा परेम है,तो आप क्यों नहीं जाते? अभी पेट नही भरा जान पड़ता है।

होरी नाँद जमा रहा था। हाँथों में मिट्टी लपेटे हुए अज्ञान का अभिनय करके बोलाकिस बात पर बिगड़ती है भाई? यह तो अच्छा नहीं लगता कि अन्धे कूकर की तरह हवा को भूका करे।

धनिया को कुप्पी में तेल डालना था,इस समय झगड़ा न बढ़ाना चाहती थी। रूपा भी लड़कों में जा मिली।

पहर रात से ज्यादा जा चुकी थी। नाँद गड़ चुकी थी। सानी और खली डाल दी गयी थी। गाय मनमारे उदास बैठी थी, जैसे कोई वधू ससुराल आयी हो। नाँद में मुंह तक न डालती थी। होरी और गोबर खाकर आधी-आधी रोटियाँ उसके लिए लाये,