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गोदान
 


नहीं करती थीं कि मरद उन्ही को पसन्द नहीं करता था। एक बार मैने बड़ी बीबी से पूछा,तो हँसकर बोलीं-हम लोग यह रोग नही पालते;मगर भीतर-ही-भीतर खूब गुलछरें उड़ाती थीं। जब देखें,दो-चार लौंडे उनको घेरे हुए है। जो सबसे बड़ी थी, वह तो कोटपतलून पहनकर घोड़े पर सवार होकर मर्दो के साथ सैर करने जाती थी। सारे सहर में उनकी लीला मशहूर थी। गपडू बाबू सिर नीचा किये,जैसे मुंह में कालिख-सी लगाये रहते थे। लड़कियों को डाँटते थे,समझाते थे;पर सब-की-सब खुल्लमखुल्ला कहती थीं-तुमको हमारे बीच में बोलने का कुछ मजाल नहीं है। हम अपने मन की रानी हैं,जो हमारी इच्छा होगी,वह हम करेंगे। बेचारा बाप जवान-जवान लड़कियों से क्या बोले। मारने-बाँधने से रहा,डाटने-डपटने से रहा;लेकिन भाई वड़े आदमियों की बातें कौन चलाये। वह जो कुछ करें,सब ठीक है। उन्हें तो बिरादरी और पंचायत का भी डर नहीं। मेरी समझ में तो यही नहीं आता कि किसी का रोज-रोज मन कैसे बदल जाता है। क्या आदमी गाय-बकरी से भी गया बीता हो गया है? लेकिन किसी को बुरा नहीं कहती भाई !(मन को जैसा बनाओ,वैसा बनता है। ऐसों को भी देखती हूँ,जिन्हें रोज-रोज की दाल-रोटी के बाद कभी-कभी मुंह का सवाद बदलने के लिए हलवा-पूरी भी चाहिए। और ऐसों को भी देखती हूँ, जिन्हें घर की रोटी-दाल देखकर ज्वर आता है। कुछ बेचारियाँ ऐसी भी हैं, जो अपनी रोटी-दाल में ही मगन रहती हैं। हलवा-पूरी से उन्हें कोई मतलब नहीं। मेरी दोनों भावजोंही को देखो। हमारे भाई काने-कुबड़े नहीं हैं,दस जवानों में एक जवान है;लेकिन भावजों को नहीं भाते। उन्हें तो वह चाहिए,जो सोने की बालियाँ बनवाये,महीन साड़ियाँ लाये,रोज चाट खिलाये। वालियाँ और मिठाइयाँ मुझे भी कम अच्छी नहीं लगतीं;लेकिन जो कहो कि इसके लिए अपनी लाज बेचती फिरूं तो भगवान इससे बचायें। एक के साथ मोटा-झोटा खा-पहनकर उमिर काट देना,बस अपना तो यही राग है। बहुत करके तो मर्द ही औरतों को बिगाड़ते हैं। जब मर्द इधर-उधर ताक-झाँक करेगा तो औरत भी आँख लड़ायेगी। मर्द दूसरी औरतों के पीछे दौड़ेगा,तो औरत भी ज़रूर मर्यों के पीछे दौड़ेगी। मर्द का हरजाईपन औरत को भी उतना ही बुरा लगता है,जितना औरत का मर्द को। यही समझ लो। मैंने तो अपने आदमी से साफ़-साफ़ कह दिया था,अगर तुम इधर-उधर लपके, तो मेरी भी जो इच्छा होगी वह करूँगी। यह चाहो कि तुम तो अपने मन की करो और औरत को मार के डर से अपने काबू में रखो,तो यह न होगा। तुम खुले-खजाने करते हो,वह छिपकर करेगी। तुम उसे जलाकर सुखी नहीं रह सकते।

गोबर के लिए यह एक नयी दुनिया की बातें थीं। तन्मय होकर सुन रहा था। कभी-कभी तो आप-ही-आप उसके पाँव रुक जाते, फिर सचेत होकर चलने लगता। झुनिया ने पहले अपने रूप से मोहित किया था। आज उसने अपने ज्ञान और अनुभव से भरी बातों और अपने सतीत्व के बखान से मुग्ध कर लिया। ऐसी रूप,गुण,ज्ञान की आगरी उसे मिल जाय,तो धन्य भाग। फिर वह क्यों पंचायत और बिरादरी से डरे? झुनिया ने जब देख लिया कि उसका गहरा रंग जम गया,तो छाती पर हाथ रख