पृष्ठ:चंदायन.djvu/११०

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१०. (५) बरउत-सगाई पषा करनेके निमित्त आनेवाले नाई और ब्राह्मण । (६) ओगहि-योग्य, पद मर्यादाम समान ! कासों-पिससे । (रीलैण्ड्म १७) पुरिस्तादने राय जीत थॉमन व हमाम रा यर महर बराये पैगाम बावन रो (राय जीतका वाघनके विवाह सन्देशके साथ नाई और ब्राह्मणको भेजना) चौथें वरिस धरसि जो पाऊ । जीत बुलावा बॉमन नाऊ ॥१ दीनि विसारी मोतिन्ह हारू । कहहु महर सों मोर जुहारू ॥२ औ अस कहहु मोर तूं भाई । राजा नीके करहु सगाई ॥३ औ जस जान कहसि सॅवारी । जइसन पर घर सुनी सँकारी ॥४ महर कहसि को मुँहि पै आजू । हम चाहत हहिं आपन काजू ॥५ इत कहि के बॉभन नाऊ, दोऊ दीन्हि चलाइ ।६ परै चॉद पावन कॅह, वेग कहउ मुँहि आइ ॥७ टिप्पणी-(१) जीत-चेत पाठ भी सम्भव है। (२) जुहार-प्रणाम । (३) अस-ऐसा । मोर--मेरा । नोक-अच्छे । (४) जस-जैसा ! अइसन-जैसा । (सेरेम :८) आमदने बरे मन व हाग पर मदर व अर्जे पदने पैगामे यायन ( माहण और नाईदा मारे पास अर यावनका सन्देश कहना) बॉभन नाऊ गये सिंहबारू । देख महर दुहुँ कीन्हि जुहारू ॥१ महर कहा कित पौडे आया । औहट लहि औधारी पावा ॥२ सुनहु देउ मम जीत पठाई । धरम लाग वितन्ते आई ॥३ उहो आह तुम्हारेउ भाई । राजा नीके करहु सगाई ॥४ धरमराज तुम जुग जुगपावहु । हम दिये कर बोल मुनाबहु ।।५