पृष्ठ:चंदायन.djvu/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०६
 

(६) झुरवह-(स० स्मृ० धातुका प्रा० धात्वादेश मुरई चिन्तित रहती है । मेरोइ-बुरेदती है, कोंचती रहती है । (रीलैण्ड्स २६) गिरिया व जारी गर्दन चाँदा अज दूर मानदने बावन व सुनीदने नन्द चोदाका विरह-विलाप; ननद का सुनना) परस देवस भा चॉद वियाह । सूर न देखी आछी छाँ है ॥१ पतिवॉती निसि सेज दुहेली । सो धनि कैसे जिये अकेली ॥२ वायन काउ पूछि नहिं पाता | हो रे न जीयउँ कार क राता ॥३ एको साध न हिये युझानी । मुयों पियासन नाँक लहि पानी।।४ यहिं विरह उठि मैं जाऊँ । तैसों राँड़ सुहागिन नाँऊँ ॥५ ननद बात सब सुन के, कही महरि सो जाइ ६ दीदी जाय मनावहु, चाँदा रिजलस*] खाइ ॥७ टिप्पणी-(२) दुहेली-दोके साथ । (७) दीदी-माँ। यह प्रयोग असाधारण है। पिताके लिए दादा सम्बो- धन रोक्म प्रचलित है। सम्भव है उसके अनुपरणपर माँयो दीदी कहा जाता रहा हो। पर अब इसका प्रयोग यडी यानक लिए होता है । दाउदने अन्यत्र (३९९।१) सासके लिए भी बहसे यही सम्बोधन कराया है। ४७ (रीलैण्ड्स २७) आमदने शुभ व तपहीम कर्दन चॉदा रा (सासका आकर चाँदाको समझाना) मुनिके महरि चॉद पहँ आयी । काहे वह रजलस सायी ॥१ दूध दाँत तूं मिटिया पारी । हूँ का जानसि पुरुख अदारी ॥२ तू अचेत पुरुष का जानसि । विन पानी सातू कम मानसि॥३