पृष्ठ:चंदायन.djvu/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०८
 

१०८ ४९ (रोलैण्ड्स २९) गुम्सा कर्दने ससूअ वर चाँदा दर व रझा दादन वराम महर रफ्तन (सासरा चाँदमे द होकर महरके घर चले जानेको कहना) तोरे आध मैं तहिया जानी । यात कहत तूं मुँहि न लजानी ॥१ तोको चाही कीनर पसेऊ । विन दहि मथें के निसरे घीऊपर बावन मोर ध कर पोवा । निस कित बावन तों संग सोवा ॥३ तू अमरैल न देखसि काह । विन धहि कस नवइ गयाहू n४ जौलहि बावन होइ सयाना । और वियाहि के है तो आना ॥५ जो तूं जैहसि मैकें, अभे पठौं सन्देस ६ कहाँ कर वाँगर बिटिया, नारों सोई देस ॥७ (रीलैण्ट्स ३०) तलबीदने चाँदा जुनादार रा व मिरित्वादने दुइवारी पर पिदर (चाँदामा ब्राह्मणको पुलाफर पिताके पास अपना कष्ट कहलाना) चाँदहि गरुव भयउ घरवारू । चेरी बाँभन जाइ हँकारू ॥१ आइ सो चाँभन दीन्ह असीसा | चन्द्र बदन मुख फेंफर दीसा ॥२ परहँसि कहि सँदेस पठावा ! बोल थाक हिये घबरावा ॥३ नैन सीप जस मोतिहँ भरे । रोयसि चाँद आँसु तस डरे ॥४ चोली चीर भीज गा पानी । जनु अभरन सो गांग नहानी ॥५ बाँभन कहसु महर सों, मोरै दुख के वात ।६ भाइ कहार सुखासन, बेगि पठउ परभाव ॥७ ५१ (रोलैण्ट्म ३) बाज नमूदने पर हमन पर महर आरानीदने महर चाँदा रा व दारवन पर सानः (माझगका महरसे सन्देश कहना और महरका घाँदा अपने घर बुलाना) याँभन जाइ महर सों कहा । हियें लाग दी जरतहिं रहा ॥?