पृष्ठ:चंदायन.djvu/१३३

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१२३ पास लुबुधि तह पैठउ आई। गाढ़ रहा हरजाँह खडाई ॥३ तिल पिरहें पन घुघची जरी । आधी कार आधी रत फरी ॥४ सिंह विरहैं महिं मरन सनेहा । रकतहीन कोइला भइ देहा ॥५ तिल सँजोग वाजिर सर कीन्हों, औहट मा परजाइ ।६ राजा हिये आग पड जारे, तिल तिल जरै बुझाई ।।७ पाठान्तर--बम्बई प्रति- शीर्षक-सिफ्ते खाले वेमिसाले मह पैकरे चाँदा मियानये चम्मोगोश नुत्त ये सियाह उफ्तादन (चन्द्रबदनी चाँदाकी ऑस और उसके कान बीच स्थित तिल्की प्रशसा)। १-यास लुबुधि बैठो भुलाई । २-आधि । ३–रिरह दगध हौं । टिप्पणी-(१) मसि-पाही। (४) धुंधची-रतिवा, कृष्णल, रत्ती। कार-काला। रत-रक्त, राल । (रीलैण्ट्स ४९४ , यम्बई ४) सिफ्त गुल्ये चाँदा गोयद (मीषा वर्णन) राजा गियँ कै सुनहु निकाई । जनु कुम्हार धरि चाक फिराई ॥१ भोंगत नारि कचोरा' लावा । पीत निरातर गहि दिखरावा ॥२ देव सराहँहि (तैसो) गोरी । गियँ उँचार गह लिहसि अजोरी॥३ अस गिय मनुसँहि दीख न काहूँ । ठास धरा जनु पलैकियाई ॥४ का कहुँ असकै दयी सँवारी । को तिहुँ लाग दयि कवारी ॥५ हियै सिरान राजा कर, सुनसि कण्ठ अँकवारि ।६ गोचर मार विधासों, आनों चॉदा नारि ॥७ मूलपाठ-(1) सिंह लैसो। पाटान्तर-बम्बई पति- शीर्षक-सिफ्त मोहरये मह पैरे चाँदा मिस्ले औद पुलाल गुजारतन (चन्द्रवदनी चाँदा प्रीवाकी कुम्हार चाकसे तुलना)