पृष्ठ:चंदायन.djvu/१३४

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१२४ १-जीरें । २-तितसो। ३–नहिं । ४-अपछरा के लीन्ह । ५-अस मनुसहि आत न काहू | ६-ठास धरो चल्त कियाह । ७-कहों । ८-कठ। टिप्पणी-(१) गिय-ग्रीवा, कण्ठ | निकाई-मुघरता । (५) हिये-हृदय । सिरान–टण्डा हुआ। (७) विधासों-विध्वस करूँ। मानों-ले आऊँ । ८७ (रीरेण्ड्स ४९ ब) सिफ्ते दो हस्त चॉदा गोयद (भुना पर्णन) सुनहु भुआ दण्ड कहि लै लावउँ । यह जगजो तम कछु न पायउँ॥१ कदरि सँभ देसउँ तस बॉहें । जर पौनार मिसेसी चाहें ॥२ इंगुर जइस सलोनी वीसा । अरु फित पुरुस हारिहिं दीसा॥३ पर वाह जनु (धर) सारे । वेध सहित बाउ सिंगारे ॥४ जोर भुआ पुरुस पोसाऊ । एको नियर न जियते पाऊ ॥५ नस फाल राउत के, धरे फेर गह सान ६ बड झर लाग अनारी, राजा देथ परान १७ मूलपाट-१-धरधर । टिप्पणी-(४) दोना पदाका पाठ असन्तोषपूर्ण है। ८८ (रीटेण्ट्स ५०४ , पजाय []) सिरते पिस्तान चाँदा गोयद (कुच घर्गन) सोन थार हीयें चुन घरे । रतन पदारथ मानिक भरे' ॥१ सहज मिंधोरा मेंदुर भरे। थनहर फेर कँदीर धरे' ॥२ नारंग थनहर उठहिं अमोला | मर न देसी परन न टोला ॥३