पृष्ठ:चंदायन.djvu/१३५

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समुंद भरा जनु लहरै दिये । पुरइन क रस जस भेवरे लिये ॥४ अपरित हिरदेउँ वेल उपाने । साज कचोस हिरदेउँ ताने ।।५ कुसुम चीर तर देरोउ, फरे वेल इह भात ॥६ राजा खाइ निसर गै, सुन अस्थन भइ सात ||७ पाटान्तर-पजाब प्रति- इस प्रतिक उपलब्ध फोटोम लाल स्याहीसे लिसी पक्यिा नहा उमरी जिसके कारण शीपक तथा पत्ति ३, ६ र ७ का पाठ ज्ञात न हो सका । साथ ही पृष्ट पटा होने के कारण पत्ति ५ का उत्तर पद भी उपलब्ध नहीं है। इस प्रति में पति ४ और ५ परस्पर स्थानान्तरित है। १- जरे । २-भरा । ३-सरे । ४-बचोरी। टिप्पणी-(२) सिंधोरा-सिदूर रखने का पात्र । यनहर--स्तन । (४) पुरइन-(स० पुटिक्निी ) कमल । (५) चोरा--कटोरा। (६) तर-नीचे। परे-पले। (रीलैण्ट्स ५०५) सिफ्ते शिक्मे चाँदा गोयद (पेट धर्णन) पेट कही सुन चउचक राजा । ऐपन सान कॉपर साजा ॥१ पूरन सॉड सपूरन पोरे । जहवाँ दीसहि तहयॉ गोरे ॥२ जानु सुहारी घिरत पकाये । देखत पान फल पतराये ॥३ नाभी कुण्ड जो डुबरसी परो । देसतहि चूड़ न पावइ तीरो ॥४ जॉनों अन्त पेट महँ नाही । अॅतर क चॉद दीस परछाँही ॥५ अति अवगाह बोल अस घाजिर, तामेहि सझि न तीर १६ सुनके राउ दौर घस लिये, बूद न पावइ तीर ॥७ टिप्पणी-(१) यउचक-भूस, अशान । एपर-भिगोये हुए चारल्म हदी मिलाकर पीसा हुआ योग, निसे शुभ अवसरोंपर स्थियों चौक परन,