पृष्ठ:चंदायन.djvu/१३७

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१२५ चौदई चाँन देखि पाँ लागहि । पापकेत वरसहिं कर भागहि ॥४ रूप पुतरिंगढ़ दस नख लावा । तरुवहि रकत भू तर चलि आवा ॥५ पायि परौं मुख जोऊँ, सो धनि उतर न देइ ६ सुनत राउँ विसँभरि गा, मर मर सॉसें लेइ ॥७ पारान्तर-पजाब प्रति-- इस प्रतिको उपराध पोटोमे लाल स्याहीसे लिखी पक्तियाँ अत्यन्त अस्पष्ट हैं। पलतः शीर्षक और तीसरी पत्तिका पाट सम्भव न हो सका। पृष्ठ पटा होनेसे पक्तियाँ ६-७ भी अप्राप्य हैं। १-सम्म । २-~-परहाये । ३---गद । ४-औ समतोल हिय तर अस धरा। ५-विमोहहि । ६-जाहि । -लागी। ८-भागी ( पूर्व पद के अनुसार)। ९-तरुवन । (रीलैण्डस ५२) सिफ्ते पाय व रफ्तारे चाँदा (पग और गति वर्णन) हस गँवन ठुम ठुमकत आवइ । चमक चमक धनि पाउ उचाबइ ॥१ झनक झकक पौ धरती धरा । चमक चमक जनु सुगति भरा ॥२ सेल मल्हानसों चॉदा आवइ । जानों कीनरि बेगु उचावह ॥३ सर भुई धरउँ चॉद धरि पाऊ । नान हुनै न काढ़े गाऊ ॥४ पागै थूर नैन भरि ऑजौं । जीभ काढ़ि दुइ तरुवा माँजौं ॥५ चलत चाँद चित लागा, मनहुत उतर न काउ ६ __पाँयहि हाथ न पहुँचे, हँस हँस रोवइ राउ ॥७ टिप्पणी--(१) उचापद-उठाती है। (२) पौ-पाव, पैर। (४) मुई-पृथ्वी । नानहुतै-छुटपन से ही । (५) धूर-धूलि । मार्जी-अजन की तरह लगाऊँ। तहमा-ताल, पैर का निचला भाग।