पृष्ठ:चंदायन.djvu/१६३

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१५३ सीह लाग रन रीसे, कॉप उठी नपार ६ नहाँ भयउ जर कॅवरू, काटसि खेद सियार ॥७ टिप्पणी-(२) पुरै तत्काल । (रीरेण्ड्स ९०) जग कदंने सिगार या बॉठा व कुझ्न शुदने सिंगार (सिंगार बाँठा युद्ध सिगारकी मृयु) देख सिंगार कोह घर चढा । बाँध फरहरा आगें सरा ॥१ दौर गहसि सर खॉडइ घाऊ । तातर टूट काहि गा पाऊ ॥२ दसर खॉड लिहसि तत्तारी । भिरे भाट धर गीउ उपारी ॥३ दाब सिंगार चोर तस मारा । विचला खाँड टूट गड धारा ॥४ अनि जमधर साते कर गहे । बजर चोट सर चेरै सहे ॥५ चिनु हथियार भया राउत, परिगा थाक सिंगार ६ एक चोट दोइ कीतस, घर सों फाट कपार ।।७ टिप्पणी-फारसी शीर्षक असगत जान पडता है । इस कहवळमें बाँठका कोई उल्लेख नहीं है । दसम विल सिगार के युद्धपी बात जान पड़ती है। (१) फरहरा-पताका, झटा। (३) गीउ...गर्दन । (4) जमघर-झुकी नोक्वाली क्यार । १३२ (रीरेण्ड्स ९१) आमदने ब्रह्मदास व धरमें अन तरपे राव रूपच द व पुरतः शुदने ब्रह्मदास (राय रूपचन्दकी ओरसे ब्रह्मदास और धरमूंका आना और ग्रह्मदासका मारा जाना) ब्रह्मदास धरमू दुइ आये । राइ मया कर पान दिवाये ॥१ आज सुदिन जाकहँ पटवारे । गाँउ ठॉउ कापर से सारे ॥२