पृष्ठ:चंदायन.djvu/१६४

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२५४ ओडन चँवर लाग घुघरा । वरमदास सो आगे घरा ॥३ छाँड़ फिरे धानुक कर गहा | यानि भूलि धरि चीरें रहा ॥४ बरमदास तुम नेर न आवहु । कौन लाभ किहँ जीउ गशबहु ।।५ वरमदास मन कोपा, काट मुंड लै जाउँ १६ बुझता पान निकर गा, ब्रह्मदास परा ठाँउ ॥७ १३३ (रोरेण्डस १२) जग गर्दन परन व बुझत. सुदन धरन ( धरना युद्ध करना और मारा जाना) फुनि धरम गुन मेलस तानी । चॉघ हट औ पंच गवानी ॥१ चला बजाइ भेरि औ (तूरा) । तौलहि घर चाँपड़ पाला ॥२ धरने कोप पीठ लइ मिरे । चारै गर धरमूं के धरे ॥३ गये परान घर घर मारसि । काढ़ कटार हिये महँ सारसि।।४ देइ पाउ तोरसि भूदण्टा । काटसि चीर सीस नौखण्डा ॥५ रनमल पैठ खड़ग लै मारमि, कँवरू कह पूत ।६ रहे न तेगा नर पै, जूझ राड जमत ॥७ मूलपाठ-तरा। टिप्पणी--(२) इसका पूर्वपद और अगले कडकको पक्ति २ का पूर्व पद एक हो । १३४ (रीरेण्टम ९३) पैपिपने संगे रनमावि गोपद (रपतिका युद्ध) रनपव दीन्हि महर अगसारी । चाहु बियाहि अनैं कुंवारी ।।१ चला बजाइ भेरि औ (तूरा) । खड़गमॅठ भर लिहसि सिंघोगणार दौर खाँड रनमल सर दीन्हाँ । रकत घार सय मेंदुर कीन्हाँ ॥३