पृष्ठ:चंदायन.djvu/१७१

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१४५ (रीरेण्ड्स १०३) पर आमदने चॉदा अर बालये क्स व दीदन तमाशा लोरक व बुदने बिरसत राना खुद (विरस्पतके साथ चादया महलकी छतपर जाकर लोरका जुल्म देखना) चॉद घोराहर उपर गयी । चेरि निरस्पत गोहन लयी ॥१ परी सॉझ जग भा अँधियारा । चाँद मॅदिर चढ़ गड उजियारा ॥२ सो क्स आह जैगोर उबारा । करन वीर जिहँ क्टक संघारा ॥३ कौन मनुस जिहँ कीनर हों। धन सो जननि अइस जै जनॉ॥४ पछेउँ धाड यचन सुन मोरा । डहॅ दर कौन सो त लोरा १० कवन रूप गुन सुन्दर, आँखा निरस्पत तोहि ।६ साध मरत हो वीरन, लोर दिसावहु मोहि ॥७ टिप्पणी-(१) गोहन-साथ । (२) मदिर--आजकल मदिरका प्रयोग देवस्थानके लिए दिया जाता है, पर मध्यकालीन साहित्य में सुदर भवन और राजपुरुपोंके आवासको मदिर कहा गया है। याणने महासामन्त स्पन्दगुमफ मदिरमा उल्लस किया है। (३) उबारा--उद्धार किया। (७) साध-दच्छा। १४६ (रीलैण्ड्स १०४ काशी) निशानी नमूदने पिरस्पत चाँदा रा अज जमारे सूरते लोरक (रिस्पतका चाँद्रको लोरकका रूप बताना) लारह चाँद मुरुज के जोती । पुण्डर सोन देह गजमोती? चॅदर लिलार' धरा जनु लाई | चमक यतीसी अतइ मुहाई ॥२ गुनिया कैस लक लह आई । लंक छीन कोने पचमाई ॥