पृष्ठ:चंदायन.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१६२
 

१६२ नैन कचोरा दूधैं भरे । जनु छितयाँ तिहँ भीतर परे ॥४ कनक वरन झरकत है देहा । मदन मुरत अद लाग नखेहा ॥५ तानी रात पिछोरी, हस्ति चढ़ा दिखाउ ।३ कस सर पार्ग सलोने, तिरिछ कटार सुहाउ ॥७ पाठान्तर-वाशी प्रति- शीर्षक-नमूदने बिरसत लोक ग वर जाँदा (चाँदसे पिरस्पतका लोरक- की प्रशसा करना)। १-ललाट । २--खोपा पेस इतह (1) लट्टराई। लक छीन हर (1) कही न जाई ।। ३--रूपै। ४-उपिया (१)।५-धरे। ६-कर हर पाग । ८-आजन (१)। टिप्पणी--(६) रात पिचौरी-देखिये १४४।४ । १४७ (रोरेण्ड्स १०५) दीदने चाँदा जमालो कमाल लोक व वेहोश शुदने ऊ (ोरकका सौन्दर्य देसार चाँदशा मूर्षित हो जाना) चॉदहि लोरक निरख [नि ]हारा । देखि विमोही गयी बेकरारा ॥१ नैन झरहिं मुस गा कुँमलाई । अन न रूच औ पानि न सुहाई ॥२ मुरुज सनेह चाँद कुँमलानी । जाइ विरस्पत छिरका पानी ॥३ घर आँगन सुस सेज न भावइ । चॉदा माहे मुरुल पुलावइ ॥४ पूनिउँ चॅदर जैस मुख आहा । गइ सो जोत सीन होइ रहा ॥५ सहसकरॉ मुरुज के, रहे चाँद चित छाइ ।६ मोरहकराँ चाँद के, भयी अमावस जाइ ॥७ टिप्पणी-(६) सहमरों-हजार विरण अपरा हजार कलाएँ। (७) मोरह -सोलह कलाएँ। चन्द्रमा गोल्ड क्लाएँ मानी जाठी है। पूर्णिमारे नन्द्रम पन्द्रह बलर रोगी है। भायाराम पैले हुए नगन, जिनो मध्य चन्द्रमा मुशोभित रहता है, उसको गोल्हवी पल कही जाती है।