पृष्ठ:चंदायन.djvu/१७३

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१४८ (रीलैण्ड्स : ०६ : पंजाय [ला०]) तफहीम कर्दने बिरस्थत चॉदा रा कि होशियार घाश (बिरस्पतका चाँदाको समझाना) कहइ पिरस्पत चाँद सँभारू । सुरुजलागि कस करसि सभा[रू] ॥१ हाथ पाउ समरस नहिं वारी । वाँधु केस ओदि लै सारी ॥२ जोत लागि सुरुज के झारा । कै सँडवान पियाऊँ सारा ॥३ राजकुँवरि कान न करसी । हाँसो थाइ मोर लाज न धरसी॥४ आनौं पानि पैसि मुख धोबहु । अल्हर सेज सुस निदरा सोबहुं ॥५ जो चित है तुम्ह (बसा), भोर कहउ मोहि ।६ रैन जाह दिन अगवइ, उतर देउ मैं तोहि ॥७ पाठान्तर-पजाय प्रति- पोटोमें शीर्षक अपाच्य है। १-कभारू। २-भारी । ३-यह पक्ति अपाठ्य है। ४-मान करी। ५-उर। ६–यह शब्द कट गया है। -पोटो में दोहा अपाच्य है। मूलपाठ-(६) निमा । टिप्पणी-(३) झारा (स० ज्वाला> झार) तेज ! खंढवान-साँडका पानी, शरयत । (५) भल्हर-अल्हड । यह अपपाठ जान पड़ता है। पजाय प्रतिका पाट उहर अधिक सगत है ( उलर-आरामसे लेटना; निश्चेष्ट होकर पड रहना)। १४९ (रीलैण्ड्स १०७) पन्दादने चिरस्पत चाँदा रा अक्ष आमदन लोरक दर सान (बिरस्पतका लोरफको घर बुलानेका उपाय घाँदको बताना) गयी सो खेल रैन अँधियारी । उठा सुरुज जग किरन पसारी ॥१ दिन गये घरी निरस्पत आई । चाँद कर आन जाइ जगाई २