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पृष्ठ:चंदायन.djvu/१८२

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१७२ भौरीका दिल्या उन्ला और चावल भी सफेद होता है। इसका भात मुलायम होता है । यह अगहनी धान है। इसे दुधकतरी या दृक्षराज भी कहते है। (.) इसके दूसरे पद का पाट-रूपसिया दहिसोधी भी हो सकता है । पर दोनों ही अवस्था मात्राओंकी न्यूनता है। इस कारण पहना कठिन है कि चावल का नाम सोनदही है या दहिसोधी । (६) पप-माँड । पसाप-निचोड पर । (रीरैण्ड्म ११७ पम्बई १३ पजाय []) गिपत गन्दुम व नाने मैदये साल्सि (गेहूँ ओर शुद्ध मैदेवी रोटीका वर्णन) हाँसो' गोहूँ धोड पिसाई । कपर छान के छार वनवाई ॥१ अति बडबडती बड भर तोला । मेन सुहाउ' कृज जनु होला ॥२ टूटै न तानाँ दुहु कर तोरा । नेनं माझ हाथ जनु बोरा ॥३ जउ साथ मरं गासे तलानी" मुस मेलत सिनजाहि"पिलानी॥४ सकर देस जेहिं" चित लाई। भरें न पेट न भूख बुझाई" ॥५ कपुरवास" पर मुख", भोंगत चाहिं उड़ाइ ६ भार सहम दोड" तिलकुट, महरे धरे बनवाइ ॥७ पाटान्तर-यम्बई और पजाव प्रति- शीर्प-(१०) सिपते गन्दुम व नाने तग (गेहूँ और छोटी रोटीका वर्णन)। (प.) शीर्षन उपलब्ध पोटो में उपाठ्य है। १-(प.) हसा । २--(१०) छाल ! ३--(प.) पीआई । ४-(व.) बटवरती, (१०) पद सम । ५-(10) मुहाइ। ६-(40) सुंना ७-(२०) तानें, (प.) तनै न टूटे। ८--(५०) उउ । ९-(०, ५०)ए । १०१०) कार। ११--(१०, २०) तलाई । १२-~ (16) अनु जाई। १३-(१०,१०) विला। १४-~(५०, ५०) सर दिन । -(10-जेंउ जो, (१०)जो जीह । १६--(प.) भूल न जा। १७--(२०) र माम, (१०) पेपरयास अपरा कपरवास । १८--(५०) मुग र ११९-(५०) दर ।