पृष्ठ:चंदायन.djvu/१८३

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टिप्पणी-(१) हाया इसके समान सफेद । गोहूँ-गेहूँ । छार-आग। (४) जडरे-जाउर (खीर) के । (रीरेण्ड्स १८ यम्बई १७ पंजाव [ला०]) सिफ्त आवदने गहाये दररतान (पत्तियांका पणन) पतरिहँ लोग तुरें बन पाता । छोर नै अबरा कीन्हें निसाता ॥१ महुआ ॲच लीन्ह धर वारी । पर पीपर फै पाँधे सारी ॥२ कटहर बडहर औ लोर लिये। जामुन गुरहरै' नॉगसब भये ॥३ .कठऊँबर पाकर बहु "तोरी । महुले कदर्भ दास ककोरी" ॥४ तेंदू गुगुची" रीठा धनाँ । पुरइन पात कर को गिनॉ॥५ पनवइ आइ बनासियत, पार्ने लाग कर जोर १६ नॉग कीन्ह हो"चारिहँ, पात लीन्ह स तोर।।७ पाठान्तर-यम्बद और पजाय पति- (२०) आवदने यगहाय दरख्तान रा बराये दोंद (१) रा (दाद (') क निमित्त यनपत्रोंका लाना) । (५०) शीर उपलब्ध फोटोम अपाय है । १--(प० ब०) कॅह । २-(प.) पता । ३-(१०) छोर न (प.) जौह । ४-(ब०) वीत (प०) शब्द न हो गया है। ---(व.) वारी 1 ६-(५०) पीपर, (५०) पेड । ७-(१०) बाँधहि । ---(२०) सारी (प.) शब्द नष्ट हो गया है। १- (१०) औ लावू, (प.) पति अपाठ्य है। १०-(ब०) गम (१०) पूरी पत्ति अपाख्य है। ११- (२०) कपिथार । १९-(५०) सम 1 १३-(२०) बहु पार । १४- (२०) महु करोदे । १५--(१०) छोरी । १६-(व०) वगची (प०) बगुचन ! १७ -(५०) पुरइ । १८-(२०) रन । १९-(३०) हम । २०-(१०) मम । २१-(१०) पनि ६ ७ अपाठ्य है।