पृष्ठ:चंदायन.djvu/१८५

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२७. गिन चौरामी से हॉडी, वामन परमि सँभार ६ परे पहुल सजहाँ, होइ लाघ' जेउनार ॥७ पाठान्तर-रीलैंड्स प्रति- शीर्षक- आम खुरानीदने महर मर सल रा अन अल्वाने नेहमत हा (महरमा लगाको नाना प्रकारसे उत्तम भो नन पिलाना) १-बैठे पारी पसरि सेगारा। २-होइ जेउनारा। ३--यह आना। ४-वतीसो (१)। ५--मास ममोरा करवा भरे । ६-टुत । ७-गिल चौरामी हाँडी नाँऊ।।-परे सनहजा बहुतर । ९-राग। टिप्पणी-(७) सजहजा-(स० साद्याव>प्रा० सज्जज्ज>पजह ज>राजद्दजा) खाने योग्य, उत्तम पल, मेवा । (रीलपदम १२१) आमदन चौदा वर कस व दीदने लोरक व वेहोश गुदन लेरक (चादाको छतपर सदी देखकर लोरकका मूर्षित हो बाना) पहिरि चाँद खिरोदक सारी | सोरह करॉ सिंगार सिंगारी ॥१ चढ़ धौराहर किहसि रिकासू । देखि लोर कहँ बिसरि गराम ॥२ लोर जानि अछरहिं दिखरावा । हि कविलास अउर को आवा ॥३ अमरित जेत माहुर भयो । जीउ सो हर चाँद लियो ।।४ मुख न जोति कया अति रूसी । चाँद मनहु सुरज गा सोसी ॥५ जइस भोंज अमरित के, झार उठी जेउनार ६ लोर लीन्ह के डाँडी, निसँभर कछु न सँभार ॥७ टिप्पणी-(१) खिरोदक ( स० क्षीरोदक)-सातवी शतान्दीसे इस यन्त्रका उन्लेग्य भारतीय साहित्यम मिलता है। इसका उल्लेख पाणने हषचरितम किया है। परिशिष्ट परपण और नल चम्पू म इसरे जो उल्लेख है उससे यह प्रकट होता है कि यह अत्यन्त हल्का साद रगमा वस्न था जिसम समुद्रकी लहराको सो आमा झरपती थी (धोदिलहरी च्यूत, क्षीरोदोमिमयाशिव)। (२) गरासू-प्रास, कौर । (३) अउरहि-अप्सरा । (४) माहुर-विप।