पृष्ठ:चंदायन.djvu/१८८

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१७८ १६७ (रीरेण्ड्स १२५) चुदने सोलिन रित्सत रा दर महल व दोदने पिरस्पत हरक य (विरस्पतरा घरके भीतर जाकर रोरको देखना) चल खोलिन तोर कहाँ रोगी । मकु औखद जानउँ वहि जिउकी ॥१ लेगइ सोलिन लोरक ठाऊँ । देखसि कया सीस धड़ पाऊँ ॥२ सूरुज धरहिं बिरस्पत आई । नैन उघार चॅदर बिहसाई ॥३ गुनि गुनि देसि अग के पीरा । कउन गरह करिहै तुम्ह पीरा ॥४ यह गुन गुनी तिरी परधाना । यह वियाधि न ओखद जाना ॥५ महर भेंडार भंडारी जी चाँदा के धाइ ।६ नैन उघार बात कहु, आयउँ आह खुलाइ ॥७ टिप्पणी-(१) मुकु कदाचित । (५) पियाधि-(स० व्याध) रोग । औसद-औषधि । १६८ (रलैण्ड्म १२६) दूर शुदने गोलिन व गुप्तने रोरस हिवायते दीदने चौदा था रिस्पत (बोरिना हट जाना और लोरका पिरस्पतसे चाद-दर्शनकी बात करना) जननि जो चाँद कह पोल आहा । सहसकराँ सूरुन परकासा ॥१ कहसि जननि यह वेदन कहीं । तोरै लाज लजाँस अहीं ॥२ खोलिन जाइ और तह ठाही । लोरक पीर हिय के काही ॥३ जिहिं दिन ही जेउनार बुलाया । महर मंदिर काह दिखरापा ॥४ सो जिउ लेगई कही न जाइ । पिन जिउभयउँ परेउँधहराइ॥५ मोरहकरों सपूग्न, चाँद जोन परगाम ।६ चीजु चमक बड़ चमकी, बँहि धीगदर पाम ॥७ टिप्पणी--(६) पीर-दुप, कष्ट । (५) धहराई-मार गिरना ।