पृष्ठ:चंदायन.djvu/१९०

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१८. पाठान्तर-यमई प्रति- शीर्षर-चे पाये उताटने लोक व इलहाहे घिसियार नमूदने ऊ (लोरक- का रिरपतने पॉव पटना और अनुरोध करना )। १-अम्हाग। ---जो । ३-रै सो। ४-महिं है।५-मेले । ६-परे । ७-टेले । ८-पाइ । टिप्पणी-(३) मिरादा-मिलाप । (१) ठेरा-हटाया। १७१ (रीलैण्ड्स १२९) हील आमोरतने बिरस्पत मर रोर रा ( बिरस्पतका लोरक्को उपाय बताना) पिरस्पत देखि लोर कर कया । मरन सनेह उठी मन मया ॥१ पाय छाडु लोरफ ले पानी । औखद करौं पीर तोर जानी ॥२ लोरक तोर दहा मैं माना । के हों के तूं अउर न जाना ॥ जो लोरक इ] नात उभारा । महँ करपना धरु झोंगी बारा ॥४ सुनु विधि मोरी जाइ मढि सेवहु । मैं लैजाब पुजावई [देवदु] ॥५ युताँ रूप होड बैठउँ, कथा भभूत चढाइ ।६ दरस निकट जो भगत, देखि नैन अघाड ॥७ टिपणी-(१) कया-पाया, शरीर । मया-ममता। (३) के हो के ।-या तो मैं या पिर नुम । (४) शॉगी-जेगी। पारा-बाना, यन्त्र । (५)जाप-जाऊँगी। (६) पुगों-(पागी) देवता, यहाँ तात्पर्य जगी रूपये है। भभून-भाम। १७२ (रम १३०) चोरून आमदने निरस्पत अल महरे लेरक व पारे उमादने मेन्टिन (दिरसनके पाहर भानेपर वोटिनम पांच पदना) कहि विरस्पत पाहर भई । सोलिन खेह पाय के लई ॥१ सीम चढ़ायमु पार्ग धरी । आम मोर अनु लीज चरी ॥२