पृष्ठ:चंदायन.djvu/१९१

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सोलिन चॅदर मेघ घिरि आना । सूरुज गहमहुत सोड छुडाया ॥३ भा सुस भरम चित जनि घरहू । नहाइ धोड कुछ अरघ करह ॥४ लोरहिं धरी चैन के पाई । जागा सुरुज चॅदर बिहसाई ॥५ मरम न करहू सोलिन चित महें, लोरक लै अन्हवाबहु ।६ अरु कुछ अरथ दरय पार, तिहि पाहर दे पठारहु ॥७ टिप्पणी-(१) खेह-धूल। (२) धूरी-धूलि । अनु–मत | चूरी-चूरचूर करना । (३) गहन-ग्रहण । हुत-~या। (४) अरथ- अर्ष पृजन उपचार । (५) अन्हवाबहु-स्नान कराओ । (७) बार-निछावर करके । १७३ (रीहौण्ड्स १३१) बेतक कर्दने सोलिन चिरस्पत रा अज सेहते लोरक (खोलिन ला विरस्पतसे वादा करना) जिहँ दिन लोरक उठी नहाई । लोग कुटुंब मै करब बधाई ॥१ तिह पहिरॉओं चीर अणेला । जो सुस आये लोरखें मूला ॥२ गई रिस्पत जिहि सब तारा । औ निसि चॉद करै उजियारा॥३ किये सेउ सत सूरज के[ रा ] | चाँद तरायी सोवन के फेरा ॥४ पाट वैस निसि चॉदा सनी । नसत तराई कहहिं कहा नी*]॥५ चाँद नसत लै तारा, पैठि धौराहर जाइ ।६ लोर लाग तिहें चिंतइ, कहि जो पिरस्पत आड ॥७ टिप्पणी-(१) करव-क्रूँगी। (२) चीर-साडी । अमोला-अमूल्य । सूला-शूल, दर्द । (४) सोवन के फैरा-सोने के लिए भेजा !