पृष्ठ:चंदायन.djvu/१९३

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१८३ १७५ (रोरैण्ड्स १३३) य' साल परसीदने लेरक धुत रा, व आमदने चादा व सहेलियान दरॉ (लोरकका एक साल तक मन्दिरमें तप करना चादका सहेलियोंके साथ आना) एक बरसि लोरक पनि सेवा । चॉद सनेह मनायसि देवा ॥१ कातिक परब देवारी आई । दार परी रितु सेले गाई ॥२ चॉद निरस्पत लीन्ह हॅकारी । आवहु देखें जॉहिं देवारी ॥३ सखी सात एक गोहन लागीं । रूप सरूप सुभागिन भागी ॥४ अखत्त चॉद चली लै नहाँ । गाउँ देवारी खेलें जहाँ ॥५ सुवन फल चॉदा लै, एक हुत मेला आइ।६ पहिरत हार टूटि गा, मोतिह गये छरियाइ ॥७ टिप्पणी-(४) सात-साद पाठ भी सम्भव है। (५) असत-एक हुत पाट भी सम्भव है। (६) एकहुत-अखत पाठ भी सम्भव है। (७) छरियाइ-विसर गये । १७६ (रीलैण्ड्स १३४) शिवस्तने हारे मुरवादोंदे चाँदा दर बुतसानये व जमावदन सहेलियॉन (चादका मोती माल टूटना और सखियोंका मोती बटोरना) समर मोतिह ले धोई पानी । चाँद कलंकै चितहि लजानी ॥१ जननि जो पूछि तो कस कहउँ । करन उतर उन उतर देउँ ॥२ पोला ससिंह छाहँ मढ़ि लीजै । हार पिरोई चाँद कह दीजै ॥३ आइ बिरस्पत हेरि हकारी । चाँद वचन सुन मही सिधारी ॥४ मड़ि सुहाउ औ छा] सुदाई । चाँद सखी लै बैठी जाई ॥५ मानिक मॉति पिरोवहि, रचि रचि पार हार ।६ पठे चाँद पिरस्पत, सूरुज मढ़ी दुआर ७