पृष्ठ:चंदायन.djvu/१९४

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__er १८४ १७७ (रोरेस ३३५) रखकरे जोगी पर्दने ररेलियाँ मर चाँदा रा (महेलियास सादयो जोगीरी सूचना देना) झाँस सहेलिहें चाँदहि कहा । इह मढ़ि मह एक आयतु अहा ॥१ अति रूपवन्त राजपुत आहे । सूरुज मड़ि निकट आयें चाहे ॥२ करक ऊँच आह विदवारू । मंदिर घेरे वीर अपारू ॥३ कौन जननि जरमेउँ अन धारा। सहसकरॉ भयउ उजियारा 18 नागर छैल सुभागे भरा । करम जोत मनु माथें परा ॥५ चाँद कहा तराई, सूरुज देखउ आइ ।६ अस भगान्त जो देसइ, दिसत पाप झर जाइ ॥७ मूलपाट-पचि ४ और ८ पे उत्तर पद गृह प्रति में परस्पर सामान्तरित है। टिप्पणी-(१) धारा-झार कर। (७) दिसत-देगते ही। घर जाइ-गिर जाये, नष्ट हो जाये। १७८ . (रोलैण्ड्स १३६) सन्म पदने चाँदा य पिहोश शुदने जोगी ... (चाँदाका प्रणाम घरना और जोगाका मूठिन होना) चाँद सीस भगवन्तहिं नारा । भा अचेत मन चेत गँवाना ॥१ सँवर मन देसन गुन गयउ । नेत बरन मुस फेंफर भयउ ॥२ नेन झरहिं अति कया मुसानी । धनिधानुक चराहना विनानी ॥३ नन दिस्टि चाँदा लायसु । दहा साइन सो देख पाय ॥४ भाहँ फिराह चाँद गुन तानी । नन थान मिस ,हनाँ सयानी ॥५ काट दीन्ह जस पफर देवार, रकत कीन्ह घरवारि ।६ देस गयी घर धरती, सँवर देउ दुआरि ॥७ टिप्पणी--(२)-कान्तिदीन; समा हुन ।