१७९ (रीलैण्ड्स १३७) बाज गम्तने चॉदा अज बुतसाना व आमदने वे खानये तुद (चाँदाता मन्दिरसे घर लौटना) पाहर मंदिर चाँद जो आई । सूरज दिसत मुख गा कुँमलाई ॥१ पूछी चॉद विरस्पत धाई | काह कहाँ कछु कही न जाई ॥२ जोहि सीस मैं सिध कहँ नावा । परा मुरम मुख बकत न आवा ॥३ हाथ पाउ सर हर न सॅभारी । धुन धुन सीस मॅदिर सों मारी ॥४ हार पिरोइ सहेलिहॅ दीन्हा । हँस के चॉद पहिर गिय लीन्हा ॥५ कहा विरस्पत चॉदा, चलहु वेग घर जाहिं ।६ चाँद सुरुज है अथवत, महरी घरे डराहिं ॥७ टिप्पणी-(३) जोहि-जैसे ही, जिस समय; जर । यात-बोली, आवाज । (४) पाउ-पैर। (७) अँधवत-हर रहे । घर-घर पर । - १८०-१८१ (अप्राप्य ) CForen १८२ Ran. (रीलंण्ट्म १३८ : यम्बई ९) वैपिषत दर तनहाइये लेरक गोयद (लौरकको एकान्ततास वर्णन) माता पिता पन्धु' न भाई । संग न साथी मीत न धाई ॥१ इहँ पनसंड कोइ पास न आवई । को र यरत मुख नीर चुआबई ॥२ दई विपत जीउ भर संचारा । बाँधसि सीस झारि गर्हि वारा ॥३ सपने सूतक मैं कछु देखा । चित नसँभारे मरन बिसेसा ॥४ कोई उठाइ बैसार सॅभारे । इहँ' कन्या को देई हकारे ॥५
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