१८६ देवहि पूछि तूं जो आहा, हो कल गा विसंभार ६ कया सूक मुख फेफर, मोर" जिय क्छ न नभार ॥७ पाटान्तर-पपई प्रति- सोप-तने लोरख पुरसते रद व पुरंदने त रा (रा, अरु रक्सा देवताले प्रश्न) इस तिन पान ३, ४,' का प्रम., ३, ४ है। १-दहन (नयही बोटे मे कन्धु' गो -हा।३- भाई। ४-पापा । ~योद। ६-माता --३1८-भार। (रिड्स :३९) वाव दादने हुत भर रस (देवका उत्सर) एक अचम्भा सुनु तू लोरा । सूतक सेते भयउ जिह तोरा ॥१ अछरिन्ह केर झुण्ड इक आया । तो तै अछरिन्ह देख न पाया ॥२ तूं तिह देखि परा मुरमाई । हौं रे पौन वर गपउँ रिलाई ॥३ भा झंकार जो तिहँ कोना । इतवर उठा बहुत गिय सोना ॥४ खिन एक हंस परन तिहँ कीन्हाँ। फिर पयान उतर मुख दीन्हाँ । ' सीस उचाइ जो देखेउँ, मंदिर चहूँ दिमि सून १६ लहन मोर जियें उतरी, लोर तुम्हारे पून ॥७ टिप्पणी-(१) सूतक मेते-सेपे हुए वे समान । १८४ (रिदम १४.) सन्बीदने बांदा निरस्त न व पुरसदने हिमापत लेप (दिनको दुटर पदय रोकळे मरन्ध विस्मा) चाँद रिम्पत पान पुलाई । पिरम कहानी कहु मोहि लाई ॥? जिहं रम सरूर बिरन रिमा। रम देवरा हिन्दै भरि चान ॥२
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