पृष्ठ:चंदायन.djvu/२१५

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झेकरें काज जीउ लै दोजा ! ताकहें चाँद दोह कह कीजा ॥३ महर काज धसि गोचरॉ लेऊँ । जीउ जो मॉग काढ़ि के देऊँ ॥४ हमरै दोह न कीजै धनॉ । दोहें करहिं सिंह कोइ न गुना ॥५ गुन अवगुन सभ कोइ न जान, जो मन आह सरीर १६ बायन पाउ घर आयउँ, हो डेउँ मझ नीर ॥७ टिप्पणी-(१) अहनात अनायास, बिना किसी कारण । (२) यायन-निमन्त्रण | दिनश्य-दाद । (३) शेफरें-जिसके। २१७ (रीलैण्ड्स १७१४) सवाल कर्दन चाँदा बर लोरक दर इस (चाँदका लोरकसे प्रेम प्रश्न) पूछेउँ लोरक कहु सत मोही । (के) एती बुधि दीन्हें तोही ॥१ सतहिं तरै सायर महें नाका । मिनु सत बूडे थाह न पारा ॥२ जिहँ सत होइ सो लागै वीरा । सब कह हनें चूड़ मॅझ नीरा ॥३ सत मुन सीचि तीर ले लावा । सत छाडै गुन तोर बहावा ॥४ सत सॅभार तो पावई थाहा । त्रिनु सत थाह होइ अवगाहा ॥५ सत साथी सत साँभल, सतै नाय गुनधार । कह सत फित तू आवसि, परु बुध दइ करतार ||७ मूलपाठ-(१) ले (लिपिकार कापर ऊपर भरसज देना भूल गया है)। टिप्पणी-(१) पती-इतनी 1 (२) सापर--सागर ! (४) गुन-रस्सी। (६) गुनधार-यह 'बैंडहार' भी पटा जा सस्ता है । पदमावत और मधु मालतीम यह शब्द अनेक बार आया है और वहाँ इस माताप्रसाद गुसने 'डहार' ही यदा है और उसे 'कर्णधार'का रूप यताया है। वामुदेवशरण अग्रवालने भी इस रूपको स्वीकार कर उसका अर्थ 'पतवार धारण करनेवाला (माही) दिया है। परात उसरे लिए