पृष्ठ:चंदायन.djvu/२२३

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२१३ चलत पाइ कर आरो पावा । कहा पॅवरियहिं तसकर आया ॥४ चॉद कहा मै चेरि बुलाउच । फूलहिं कहें फुलवारि पठाऊब ।।५ अखरै पॅवर यजर के, बीर समुंद मा भागि १६ चाँद चढ़ी चौखण्डी, पँवर नजर होड़ लागि ॥७ टिप्पणी-(४) भारो-आहर | तसकर-तस्कर, चोर । २३३ (रेषड्स १८३) मुवजिमें गिमुरदने लोरक, चॉदा बर क्स खुद रफ्तन (चाँदका धौरहर पर जाकर लोरकका ग्रह देखना) चाँदा धौराहर चढ़ि अस चाहा । सूरुज कौन मंदिर दिन आहा ॥१ जनम अस्थान जाड पग धरा । पॉच आठ सतरह दिन फिरा ॥२ मीन रासि जो करकहिं जाइह । संग परोस नियर होइ आइह ॥३ तुलॉ रैन दिन दूसम आयहि । पन्थ घरावर धैरी धावहिं ॥४ पाछे मरे गगन चढ़ आवइ । रैन चाँद कस ठोरी पावइ ।।५ यहि दिन होइ मिरावा, चाँद गुनि देसी रासि १६ गांग लॉघि कै लोरक, जो हरदी लै जासि ॥७ २३४ (रीलैण्ड्स १८५) पुरसीदन मैंना मर लरक रा केह शब कुजा बूद (मैनाका लोरकसे रातको गायब रहनेकी थान पटना) मैंना पूछहि कहाँ निसि कीन्ह । कौन नारि भोर के दीन्ह ॥१ रफत न देह हरद जनु लाई । औ मसि मुस पै दीन्हि चढ़ाई ॥२ पियर पातजस लोरक डोलसि । मुर मुरहँस निरंग मा बोलसि ॥३ हौं मनुसहिं औहट पहचानौ । बात कही नैन देख जानौं ॥४ - डील काछ सत आप गँवाना । सत कहि हैजस तुम घर आवा ॥५