पृष्ठ:चंदायन.djvu/२२६

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२१६ २३९ (लेण्ड्स १८८अ) जगार दादन सोलिन भर भैना रा (मेनासे सोलिनका उत्तर) रोम न जाइ होइ हरवाई । हिरदे बात जाड गरुनाई ।।१ हिरदे बोल भार सह लीजा । हिरदे कह जीउ गरू न कीजा ॥२ हिरद होड बुध केर उतानां । हिरद नसैनी कहा सयानां ॥३ हिरद सो सन जाड अदायी। पाउन डोल जिंह चित गरुआयी ॥४ गलइ होइ घर अपनें रहउ । अम हिरदै कहे चिन्त न करहु ॥५ आनेउँ जात गुन आगर, मैना न कीजइ कोह ।६ गाल फार ठोइ जीभ उपारों, तू लोरक कर आह ||७ २४० (रीरेण्ड्स १८८य : काशी) तकरीर पर्दने गोलिन मर मैना रा (ग्बोलिन। मैनाँसे क्यन) बारि बियाहि जो तैहुत आनी । वीर चाँधि के दीन्ह उतानी' ॥१ गुन तोर धन नाव चढ़ाई । तिहें न कन्तको कोउ पतियाई ॥२ वह मेत कम होइ हियारी । लेजु काटि के गुर्न अनारी' ॥३ लाई आग मेज दिन मोरी । चाँद सुरुज वह निसि चोरी ॥४ जोह मुरुज चाँद पहें आया । सरग तराइन मर्हे दिसराचा ॥५ लाज भयौं तिहिं सॉवर, जइस रात अँधियार ।६ नीलज चॉद मुस कारी, रात भरै उजियार ॥७ पाटालर-काशी प्रति । यौपंक-चार दादन मना बोलिन ग (मनाया सोलिनको स्वार) 'यारि रियाहि न जो राती । पीर बाँध भी नाव अहाती ॥२--गुन जो तोर । ३-सिद रग नह यो पतियाई । ४----वाट यहत गुर्ने