पृष्ठ:चंदायन.djvu/२५२

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२४३ आधी रात जो जाई, तब उठ चालहु चीर ।६ सूर उवत तुम्ह उतरडु, पौरि गाँग कर तीर"।७ पाठान्तर--मनेर प्रति- शीर्षक -मुकाम कदने लोस बरे नजमी व कैफियते जग (लोरकका ज्योतिपीके पास रुकना और ज्योतिषीका सकरकी बात कहना) १-चाँदा । २-माँग। ३-चोल सबै तुम्इ मानदु । ४–पन्य चलावद । ५-पुरुष पन्य भल सिधि पावर । ६–एक दोइ काल जैस मैं देसउँ। ७-ौगुन । ८-पेखउँ। ९-जब जायहि । १०–बुद्धि गाँग तीर। टिप्पणी-(५) गाद-सकट । (७) पौरि-तैर कर। २९१ (रीलैण्ड्स २२८ : मनेर १४६ अ) फुरद आवर्दने लोरक बाँदा रा व बाखुद बुर्दन ( लोरकका चादको नीचे लाकर अपने साथ ले जाना) रात परी' तो लोरफ आमा । मेलि परह के आपु जनावा ॥१ बाट जुहत फुनि' चॉदा होती । लेतसि अभरन मानिक मोती ॥२ अँकुरी लाइ लोर तस तॉनसि । आवत सूर चाँद न जानसि ॥३ प्रथम मेलि अरथ सब देतसि । औ पाछे चॉदा धनि लेतसि ॥४ चॉद सूरुज के पॉयन परी । मुरुज चॉद ले माथै धरी ॥५ निमि अँधियार मेघ” धन बरसे, चाँद सूर" लुकाइ । ६ बगि बेगि के चाले दोउ, आनउँ जाइ उड़ाई" ॥७ पाटान्तर-मनेर प्रति- शीर्षक दास्तान आमदने लोरक दर सानये चाँदा पर लोरक (लोरक का चाँदरे घर और (चाँदका) लोरवर पास भाना) इस प्रतिमें पक्ति ३ और ४ नमश ४ और ३ हैं। १-भयो। २-याट गहत तो। ३-ताना। ४-आवत चाँद मुरुज ने जाना। -पाई मुरुज चाँदा धर लेतसि । ६- पायहि | 0- मुरुज । ८-माथ! •-नीर । १०-मुरुज। ११-वेगि बेगि चनु चाँद कुवारी, जाहि गेहा दूर उडाद ।