पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६२

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साँस मार यावन वस धावा । मार विपारउँ जान न पाया ॥३ जात गोवार चरावइ गायी । अपने करी सो धाइ परायी ॥४ जे जे धावइ पावइ सोजू । इहँ परिहँस तो रही न रोजू ॥५ परे चलहिं यह धावइ, मिला कोस दस जाइ।६ ऊँचा विरिप सुहावन एक हुत, लोरह लीन्हाँ आइ' ॥७ पाठान्तर--मनेर प्रति-- शीर्षक दास्तान दुम्बालए चॉदा व गेरक दबीदने पावन (बाचनका चॉद और लोरक्का पीछा करना) १--कर । २--करऊ। ३-तौलहि लोरक कोस दोई गयऊ । ४-~- जाइ । ५ -जमन (१)। ६-जउ जउ धाउन पाषइ खोनू । ७-- इह परिह्स रहै न रोनू। ८-वइ र चरें। ९-ऊँचा घेरा मुहायन, लोरक लीन्हा नाई। ( अनुपलब्ध) ३११ (रोहण्ड्स २४१ . मनेर १५४अ) खबर पदने चौदा बावन मी आयद व आमदने बापन (घाँइकर बावनके भानेकी सूचना देना और यापनका आ पहुँचना) चाँदइ देखा पावन आवा | बचन न आवइ थाके पावा ॥१ पावन आइ बाघ जस घेरा । फिरि जो चाँदइ पाछा हेरा' ॥२ मुस फिराइ लोर सों कहा । अब देखहु पावन आवत अहा' १३ धनुक चढ़ाइ पान कर महा । तस पारों जस देह न रहा ॥४ आव्हत हुतै पावन सर मेला । सो सर लोरक' ओडन ठेला ॥५ ओडन टि लिहास्ट फूटा, अउ लोरक गै बॉह १६ परा निरिख अम्ब कर, लोरक आउ भा सिंह छाँह ।।७ पावान्तर-मनेर प्रति-~- शीपक-दास्तान तरसीदने चाँद अब आमदने यायन (बावनको आसा देग चाँदना भयभीत होना)।