पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२५८
 

२५८ ३१६ (रोटेण्ड्स २४६ : मनेर १५६४) अनदास्तने यायन यमान व अपसोस कर्दन (बायनका धनुप फेरकर खेद प्रकट करना) पावन धनुक सो दीन्ह उदारी' । बारह परिस तजी मैं नारी ॥१ हम जाना धनुक्रहि सिधि पाई। वान भरोसे जोड़ गँवाई ॥२ धस लै हौ गॉग परउ । वृद्धि मरउँ के फंकर न धर ॥३ अब हूँ धनुक हाथ कम करउँ । बरु कंठसारा कटारा मरउँ ॥४ पर यहँ ऑसि न देखत आई । लड़गा सुरुज चॉद भुलाई ॥५ जो यह मोरी" चार पियाही, मगइ दीन्ह अउ बाप" १६ राज करो जम लोरक, चॉदहि खाइह साँप ॥७ पाटान्तर--मनेर प्रति- शीर्षक -दास्तान अन्दारतने पावन तारो पमाने खुदरा पर जमीद (बावनका धनुष-बाण भूमिपर पर देना)। इस प्रतिम पचियाँ ३, ४, ५ प्रमशः ५, ३, ४ हैं। १--जो लीन्हि उतारी। २-413-धनुर । ४-~यान भरोत तिरी । ५- भैंस लेद गाग मह पर। ६-यूटत मरउँ निपरि का भरउँ । ५-या क्ट मार बुटारी मरउँ। ८--पर यह रोस न देसउँ काही। ९-लेदगा लोरर चाँद चलाही । १०-मोर । ११-लेगा वाला परिया साँप । १२-लेर पिर एक सरभा दिया, मोरेउ परा सन्तार। टिप्पणी-(१) यरिग वर्ष। (२) जोद--की, पनी। (रोरैण्ड्म २५०) याज गुप्तने पावन न मुलाकात चदंने नेर व नौदा या विश (?) (पापना गटना : गेरक भार चादी विद्या (1) को भेंट) पारन फिरि गोर दिमि गये । लोर चाँद दोइ आगे भये ॥१ राइ काका विगा दानी | माँग दान जट्स जग न आनी ॥२