पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६८

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पान दिलावहि लीन्ह न सोई । पुरुख माँग के माँगी जोई ॥३ अइस दान जग काऊ न लिया । कहि तइस जो काउ न दिया ॥४ देस देसन्तर मानुस जाई । महरी यंस याप औ भाई ॥५ ठौर ठौर जो मनुसैं इहँ महें, एक एक लेहिं ।६ घर महँ लोग संखें मरहिं, बाहर पाउ न देंहि ॥७ ३१८ (मनेर १५७) दास्तान रवान शुदने बाचन तरफे खानये खुद (बावनका अपने घर लौटना) घपर जाइ राइ गुहराचा । कउतुक एक चोर दिसरावा ॥१ तिरिया एक जो दयी उफायी । सरग हुतै जनु आछरि आई ॥२ अइसी तिरिया कितहूँ नहि देखेउँ । चाँद तरायी एक न लेसेॐ ॥३ पुरुख एक अहे वहि पासा । देखत दुहु कहें गयी मुर सासाँ ॥ और पिटार सब सोने भरा ) अड्स न जानउँ किह कँह धरा॥५ चलहु राउ वहि मारि के, तू लै अबई जाइ।६ घरहिं माझ होइ उजियारा, अस तिरिया जो आइ ॥७ टिप्पणीयावकका शीर्षक विषयसे से सम्बन्ध नहीं रखता । ऐसा जान पड़ता है कि लिपिक उससे सम्बद्ध कडवा लिखना छोड गया है। ३१९ (मनेर १५७व) दास्तान बाज मुस्तैद शुदन व आमदने राव गंगेव मर लोररु । (राव गगेकका तैयार होकर लोरक्के पाम आना) पहिले लोरक राइ घर आवा | फिर गँगेउ गढ़ होड़ आवा ॥१ चाँद लें तोहि सरग चलावउँ । सरग तरायीं माँझ यमावउँ ॥२ कहा लोर तुम्ह साँड सँभारहु । मुहि मेंउ गॅगेउ तुम्ह न पारहु ॥३ एक साँड लोरिक तस लाया । फिरै फाट तातर महँ आया ॥४