पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८४

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२७५ चाँद मुयें कित पावई लोरा । साथ किये सो बहिर्ग मोरा ॥३ नैन नीर भार सायर पाटी । नार चढाड चाँद गुन काटी ॥४ दयाँ गुसॉई सिरजनहारा । तोहि छाडि कस करउँ पुकारा ॥५ जस कीन्हउँ तस पायउँ, चाँद रहे। मन लाइ ६ जो बाउर मनुसै" चित बाँधे, सो अइसे पछताह ॥७ पाठान्तर-बम्बई और मनेर प्रति- शीर्षक-(ब०) जाने खुद पिदा साख्तने लोरफ अज बराये चाँदा बाकयाये हाले खुद बाज नमूदन (चाँदाके वियोगमें लोरकका आत्महत्या करने की बात कहना) (म०) गिरीस्तने लोरक व परियाद कर्दने ॐ (लोरक का रोना और फरियाद करना)। १-(10) बिस नहिं गाँठ जा मरतेउँ साइ (म०) बिस नहिंह गाँठ मरख जो खाइ। २-(ब) मरिहउँ कउनै करै उपकार (म०) मारिहउँ क्उनेउँ के उपकारा। ३-(म.) जेहि । ४-(२०) पाउब (म.) पावहि । ५-(२०) साथ लिये सो बहि मैं सम नहि मोरा (म०) सो यदि ने तोरा । ६-(ब०, म०) मैं। ७.५० म०) दयी। ८-(ब०, म०) फिह । ९-(म०) रहेउ चाँद । १०-(ब०) मनुसै, (म०) - मनुसहि । ११-(व० म०) अहसहि । टिप्पणी-(१) निसर-निस्ल । (१) सायर-सागर, समुद्र । पाटी-भर दिया । गुन-रस्सी। (५) कस-किस प्रकार। (७) बाउर- बावला, मूख । अइसें-इसी प्रकार | ३४८ (रीलैण्ड्स ३६३ मनेर १६५व) गुफ्तने लोरक दरख्ते पाकर (कोकमा पाकर वृक्षरे प्रति उद्गार) परिन भई सो पाकर कैसा' 1 जिंह तर पसें परा महि' दसा ॥१ काटि पेड जरि मूर उपारों । डार डार चीर के मारों ॥२ सरि रच आग चहूँ दिसि पारो । चाँद लाई गियँ आपुहिं जारों ॥३ देस देसन्तर गये मोर लाजा' । सुरज चाँद कह निसि ले (भाजा) ॥४