पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९२

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२८३ एक बरस मढ़ि देउर जागेउँ । जोगी भेस होइ भीस मागेउँ ॥४ बरहा मेलि सरग चद धायउँ । सिर से सेलि चाँद लै आयउँ ॥५ चोर चोर कर मारत उपरेउँ, चाँद लियउ लुकाई १६ अब ते' धनि बनसँडगै छाडे, किंह घर आयउँ"जाई॥७ पाटान्तर--मनेर प्रति- शीर्षक-दमन्दिये खुद गुप्तन लोरक दरख्ले मुकाबिल (१) (ोरकका सामने पेडसे अपनी व्यथा कहना)। इस प्रतिमे पति ३ और ४ प्रमश ४ और ३ हैं। १-देसा । २–कउन सो लेखा। ३-वियहुँ। ४-महरा । ५- पिरम। ६–जोगी भेस मीप पुनि मागे। ७ छूटेउँ । ८-ते धनि लियउ छुडाइ । ९-ते। १०-आवउँ । टिप्पणी-(२) महराई-महत्ता, बडप्पन | (५) बरहा-मोटी रस्सी । मेलि-ककर । (रीरेण्ट्स २६९ मनेर १६९य ) दुभम रोज आमदने गुनी व पाय उफ्तादने ओरफ मर ऊ रा (दूसरे दिन गुनीका आना और लोरकका उसके पैरपर गिरना) एक दिन दुरै रैन तस भई । चाँद न छूटे गहन जो' गही ॥१ मन चिन्ता के नीद गवानी । दयी दयी के रैन बिहानी ॥२ लोरक देस नियर' भिनुसारा । चन्दन काटि कै चितर्हि संवारा ॥३ चाँद मॉथ लै सरि पहुछाई । नैन नीर तिह आग बुझाई॥४ फिर जो दीख गुनी एक आवा । मन्त्र घोल औ डाक पजावा ॥५ घालि पाग गिय अपनै लोरक, परा पाई सहराइ ६ सोवत' साँप डसी धनि चॉदा, सो महि देई"जियाह ॥७ पाठान्तर-मनेर प्रति- शीर्षक-दु शोरोज माँदने चाँदा दर बेहोशी (चाँदया दो दिन-रात मूर्छित रहना) १-यक दिन दूरार रैन तर भई । २-जनु । ३-11-नियर