पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९४

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३५८ (रेण्ड्स २०१ : भनेर १७०५) मन्तर ख्वानीदने गुनी व होशियार शुदने चाँटा (गुनीका मन्त्रोच्चार करना और पदिका जीवित होना) कउन लोग तुम्ह गरुड़ि पूछी । ठाँउ कह' औ जातहि झी ॥१ जात गोवार गोवर मोर ठाऊँ । धनि चॉदा पहि' लोरक नाऊँ ॥२ गुनी कहा जिन जीउ हुलावसु । धीर घहु अब चाँदहि' पावसु ॥३ पोलि मन्त्र छिरकसि लइ पानी । उतरा रिस चाँद अँगरानी ॥४ धाइ लोर घर बॉह उचाई । पिरम पियार चाँपि गिये लाई ॥५ सरग हुत चाँद उतरि जनु आई, देस सूर विहसान । कँवल भाँति मुख मिगसा, दुख जो होत कुँभलान" १७ पाठान्तर-मनेर प्रति- शीर्षक-पुरसीदने हकीम लात व नामे रोरक व चाँदा (चिकित्सकका लोरक और चाँदका नाम और जाति पूछना) १--नाँउ कहु । २-जावो । ३-मुर । ४-है। ५- बाँधहु । ६.- चाँदा । ७-पानी। ८-म०-चाँदा अँगरानी। ९-सुरगाह बाँद उतरि जनु, देखि लोर बिहान । १० दुचलान । टिप्पणी--(२) गोवार-ग्याल । ३५९ (रीलैण्ड्स २०२) होशियार शुदने चाँदा व दादने लोरफ गुनी रा जेवर (चाँदका उठ बैठना और लोरमका गुनीको आभूषण देना) हिया सिरान जरत जो अहा । टि चाँद निसि गहने गहा ॥१ लोरक होत जो आस पियासा । जियइ चाँद मन पूजी आसा ॥२ अमरन अनि के सम लोरा । वस्खन हाँम औ सोने चूरा ॥३ हतपुर शोर औ कान के पूरी । मूह मंग और कर क चूरी ॥४ हाय क फरपा सोचन नाँधी । अँगूठी मानिक के काँठी ॥५