पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९५

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अनवट रिछवइ पावर, लोर चांद कर लीन्हि ।६ अरघ दरब ओ खरग कटारा, आन गुनी कह दीन्हि ॥७ टिप्पणी- (१) हिला-हृदर । सिरान-दौलट हुला । जरत-जल रहा। अहा-या। (२) सरदन-तरौना, वानका आन्ण, जिसे वजो कहते हैं । यह पूलने आधारका गोल और रसदार होता है। हात-कली (सं०- अगलिश), गोवा एक जानुपण जे चन्द्राकार होता है और गल्ने पिपरा रहता है । चूरा-पू जे (जेडा) पाठ भी सम्भव है। (४) हतपुर-( इस्वपाटक) हाथवा पडा। दोर-सामने मत्तक पर लगाया जाने वाल आभूपण । पूरी-पूतो, त्रे आकारली पील। मंग-सम्भवतः यह मोतो माँगा अगदरूप है। मॉगौं भी जानेवाली मोतियो कील्डी। रैपर (राय) का। (५) नामी-नया नागमे पहननेका आन्पण | टी-इप्टो; 3 में पहनने का आभूषण (६) अनवर-पैर जंगटेमें पहना जाने वाला भाषण । (७) दिवई-विधुआपिटिआ। पैसो गल्पिोंमे पहना जानेाल्प आभग बिसे विवाहिता खिला हो पहनती हैं। (रीलप्टन २०३ : मनेर 118) आखिर दिसहर सप्ड चन्द नुसन परसूदने मौलना नापन (मौलाना नथनम दिसार पर इराना) मौलाना दाउद यह गित गाई' । जे रे ननां सो गा मुरझाई ॥१ धनि ते सपद पनि लेखनहारा । धनि ते बोल धनि अरपपिचारा र हरदी बात सो चाँदा रानी । नाग डसी हुव सोमहिं वखानी ॥३ वोर कहा मैं यह खंड गावउँ । कया करित' के लोग तुनावः ।।४ नधन मलिक दुख पात उभारी । सुनहु कान दड़ यह गुनिपारी ॥५ और कवित मैं करउँ बनाई, सीस नाइ कर जोर ।६ एक एक जो तुम्ह पूछउ, रिचार कहउँ चिंह तोर ॥७