पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९९

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२९. पृष्ट १७५य (क्डवक ३७६) के शीर्षसे जान पड़ता है कि उत्त प्रतिवे तैयार करने वाल्ने इसे 'टूटा' पढा था (उसने इससे हाथ पाँव क्टे होने का अभिप्राय ग्रहण किया है)। सम्भवतः इसका तात्पर्य किसी सम्प्रदाय विशेष योगीसे है। दूंटा या तोता नाम किसी योगी सम्प्रदाय की जानकारी हमें नहीं है। हो सकता है यह अपपाठ हो। ३७२ (मनेर १७३५) वू लोख, तुरा रोजे पद उपद मारा याद कुन • (रोरक, यदि तुम पर विपति आये तो मुझे स्मरण करना) लोरक जो तिह पीरा परही । चाँद तोर जो हूँटा हरई ॥१ दई सॅपरि मुहि सँवरसि लोरा । ठाउँ ठाउँ मैं आउब तोरा ॥२ एतना कहि सिध चला उड़ाई । चाँद लोर (दोइ) रहे लुभाई ॥३ घरि इक सिध बइठ नवाई । पुनि उठ चलि के वाट घटाई ॥४ देवस चारि जो चलतहि भये । नगर एक पैसारथ किये ॥५ लोरक कहा चॉद तुम्ह यइसहु, हो सो नघर महँ जाउँ ।६ कनक अन औ लावती, वर जेवन कछु र कराउँ ॥७ मूलपाट-(३) ओद। टिप्पणी--(३) एतना-इतना; यह । (५) पंसारय-प्रवेश । (६) पइमहु-यैठो। नघर-नगर । (७) कनक-गेहूँ । भन-अन्न । ३७३ (मनेर २०४४) दरमिपाने बुतमानए हिन्दुआन चाँदा रा माँद (बाँदाको मन्दिरम याना) चाँद मढ़ी वैसार छुपाई । लोर नगर महँ माद जाई ॥१ हूँ, छपिउ देसि वों पाया । छंदलाइ चाँदा पहँ आग २