पृष्ठ:चंदायन.djvu/३००

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२९१ आसन मारि बैठ तिह आयी । अब मों पहँ फित चॉदा जायी ॥३ सिंगी पूर नाद तस किया । पन वैसन्दर परा तिह दिया ॥४ सुनतहिं चॉद धि तस गई। अपछत मरन सनेही भई ॥५ जइस अहरिया पा विरध, मिरिग वेधि ले जाइ १६ ढूँटा भयउँ अहेरिया, चॉदहि गोहन लाइ ॥७ टिप्पणी-(१) सौं दें--(य. वस्तुके) क्य निमित्त । (२) छबिउ-छवि । छदलाई-बहाना बनाकर । पह-पास । ३७४ (मनेर १७४५) चीजी अफसून ईशान कि चॉदा दीवान शुद (उसका जादू करना, घादका पागल हो जाना ) सिंगी पूर मन्त्र सो लाया । चाँद सुन कछु चेत न आया ॥१ चॉदा गोहन लइ चला भुलाई । गाउ गीत औ कछु न कराई ॥२ तइस संग भइ चाँद सुभागी । गाँउ गाँउ फिरि गोहन लागी ॥३ देखि सिध औ कण्ठ अधारी । भूली कछु न सॅभारी बारी ॥४ चॉदहि बिसरा सभ सपॅसारू । विसरा लोर ने जीउ अधार ॥५ सुने नाद अउ गरइ, पाछे हेरि न पारि ।६ लोर आइ जो देखी मढ़ी, चॉदा बिनु अधियारि ।।७ (मनेर १७५) लोरक आमद च बीनदके चॉदा दर बुतरखाना नौस्त (लोकने लौटकर देखा कि चाँद मन्दिरमें नहीं है) सूनि मढ़ी देखि लोरक रोवा । काहे कहें विधि कीन्हि पिछोवा ॥१ अपहूँ जो र सरग चढ़ धारउँ । तो वह खोज चाँद कर पायउँ ॥२ लोर चहु दिसि भैमि भैमि आया। सोज चाँद कर रात न पारा ॥३ रैन गई पै चाँद न पाई । उठा सुरुज चलि सोज कराई ॥४