पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१५

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३०६ महँ पिउ दिन नित परै अमासू । संग न साथी भुगति न गराम ॥५ चार आन तुरी पलान, लोर जानहुँ घर आयहु ।६ रहा चितहि धर विच, सिरजन भल दिन लायहु ॥७ टिप्पणी-(१) अगत-अगस्त तारा । (२) खिडरिज-सजन पक्षी | (४) पितरपस--पितृपक्ष, कनागत ! प्लीझ-पाता है। ४०५ (लेण्ड्स २८८५ : यम्यई ५४ : काशी) फैफियते माह कातिक (कातिकनी अवस्था) कातिक निरमल रैन सुहाई । जोन्ह दाध हो सरी संताई ॥१ सिंह पर कामिनि सेज विछावहिं । कन्तहिं अमोल फेर गिर्ये लावहि ॥२ क? देवारी देसन आई । उत्तम परव रितु देसहि' गाई ॥३ महिं लेग सब जग अँधियारा । लेगई चॉद मोर उजियारा ॥४ इह विरोग जो नॉह न आवा । रहा छाड़ेि फुन भयउ परागा ॥५ पायें लागि के सिरजन, मों कन्तहिं जाइ सुनाय १६ होई' देवउठान बीर, पूजा मिस घर आयडु ॥७ पाटान्तर-यम्पई और पाशी प्रति- शीर्षय-(व.) सस्तो मायातिर गुफ्तने मैना पीछे शिरजन पैगाम बजानिय लोरख (मिरजनके आगे मनासा अपनी कातिक मासकी दुरः अवस्था बहना और होर लिए सन्देश भेजना); (मा.) बम्पद प्रति समान, पेरल "पैगाम पजानिर लगेर" नहीं है । इन दोनों ही प्रतियोम पनि ३ और ४ प्रमशः ४ और ३ है। १- (१०) दादह हो जो राताई; (रा.) ददादह ही र सताई । २-- (1., पा०)पना । ३-(१०, पा.) । ४-(का) ले गई। ५-(ना.) बार६--(व, पा.) पिउ। ७-( भा.) पिउ । ८-(१०) मुनाउ, (मा.) मनापा । :-(स, ना.) दोस। १०- (मा.) प्रजामि नायर (१०) पृजद गिंग आउ ।