पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१६

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३०७ (रैपड्म २८९४ : यम्बई ५.) कैफियते माह अगहन (अगहन मासको अवस्था) अगहन रैन वादि दिन सीना । दिन पर दिन जाइ तन छीनॉ ॥१ पौन झरकि तन सीउ जनावा । सिसिर गहत घर फन्त न आया ॥२ बिरहा सतुर देह दी लावइ । भसम कर मुस अंग चढ़ायइ ॥३ काम लुबुधरा' मान बिगारू । अस जीउँ जनि होइ करतारू ॥४ चाँद निसोगी हो परीं बिगौती । छाड़ि सोक रोको झर सोती ।।५ इहँ बिरहैं रर मरउँ, चॉद सुरुज लइ भागि ।६ उन्ह न छाड़ेउँ करमुखी, सिरजन पर गिय लागि ॥७ पाटान्तर~बम्बई प्रति- शीर्षव-सख्ती माह अगहन गुफ्तने मैंना पोशे सिरजन पैगाम यजानिन लोरक (सिरजनके आगे मैनाका अपनी अगहन मासरी पठिनाइयाँ कहना और रोरवये पास सन्देश भेजना)। १--सिसिर पहुंचि लोर नहिं आवा। २ दगधरा । ३-विगार । ४-~-अइस । ५--करतार । ६-हौर। ७---रोको झर । ८-दिन । ९-कान्ह छाडि। दिप्पणी-(३) दो-अग्नि । लावइ-लाती है, जलाती है । (रीलैण्ड्स २८९५) वैरियत माह पूस (यूस मासकी अवस्या) आये पूस साई थ जाऊँ । सिन एक सत देशमन सोऊँ ? सिरजन किह पर सीउ सुदारव । मरन न जाइ जिय के मारप ॥२ घर घर सौर-सुपेती साजहिं । घिरित माँस बहु भातिहँ खाजहिं ॥३ मै तन जो चीर न सुहाये । पीउ पुनि लौटि बाट जम लाये ॥४ जानउँ सिसिर कन्त मुन आउन । राइ रॉक घर गिय धनि राउच ॥५