पृष्ठ:चंदायन.djvu/३२५

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४२१ ___.(रेण्ड्म ३०.) वेल्न आमदने लोक व मुलाकात दंन वा सिरजन (रोरकका बाहर आरर सिरजनसे भेंट करना) लोर वचन सुनि पंवरि सिधारा । बरी बरभन आइ जुहारा ॥१ चीरहिं पीर मुनत औधारी ! देर कहाइ तुम्ह रूपमरारी ॥२ सिधि कल्यान धुधि भल पायदु । लस औधार सहम अरगायहु ॥३ अन्त गबर जग राज करै जो । परै वियाध खांडे जस ले जो ॥४ रूपवन्त धनवन्त सुलक्खन । सिरीयन्त जजमान विचक्खन ॥५ असके बहुत अमीमा, पीर लोरकहिं दीन्हि ।६ पुन पतरै चढ़ बैठउँ सिरजन, पोथि हाय के लीन्हि ।।७ टिप्पणी-(१) दरभन-मालप। (२) पोर-(पारसी) ब्राह्मण । भौधारी-आपा। (५) मुरम्मन-मुलभण। मिरीदन्त-श्रीमन्त । जामान-पडमान । विचारान-विलक्षण। ४२२ (रोटेण्ड्म ३०२) दीदने सिरज्न टाल-ए-लोरर व वासोरे नितारगाने साद व नहर (सिरजनका शुभ अशुभ ग्रहोंठो देव कर रोरा भाग्य मताना) मेट अब अवसि यतारी। मेख रानि तुम रूपमरारी १ मेख रिरिख और मिधुन भजे | कर्क सिंह कन्या जो गुंजे ॥२ तुला चिरचिक धनु आइ तुलाइ । मकर कुम्भ गुन मीन मुनावई ॥३ मेख चंदर जनम घर आग । तिमरें घर सूरुज दिखरावा ॥४ नवयें घरें भये परकाम् । सतयें मंगर आइ आवाम् ॥५ चार नसत तुम्ह दाहिन, कहीं गुनति अति देखि ६ मंगर युध विरस्पत, जनम चंदर रिसेखि ७