पृष्ठ:चंदायन.djvu/३५४

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साधन कृत मैंना-सत साधन कृत मैना-सतवी रचना क्य हुई, इस सम्बन्धमे अभी कुर निश्चित नहीं कहा जा सस्ता, पर इतना तो निश्चय है कि वह सोलहवी शताब्दी मध्यसे पूर्व पी रवना है। यह रचना आज दो रूपोंमें उपलब्ध है। १-चतुर्भुजदास निगम कृत मधु-मालतीये कुछ पाठोंमें यह रचना दृष्टान्त स्वरूप अन्तर्युक्त है । इस रूपमें प्राप्त मैना-सत की सूचना माताप्रसाद गुप्तने ११५४ में अवन्तिकामं दी थी। पश्चात् मधु-मालती दो प्रतियों आधारपर हरिहर निवास द्विवेदीने १९५८ में मैना-सतका एक सतरण प्रकाशित किया है । इसके अनुसार क्या इस प्रकार है- बरगापुरी अनुसूरि जातिरे महाजनम ल्न (रस) नामरे एव महाजन थे । मैना उनसी रूपवती पत्नी थी। एक समय वहाँ महाजनोंने व्यापार निमित्त परदीप जाने निश्चय क्यिा उनके साथ लालन (औरण) भी जानेको उद्यत हुआ । उसको पत्नी मैनाने रोक्नेसी चेष्टा की। लालन (लोरस) उसे समझा बुझाकर यह आवासन देकर कि यह एक वर्ष लौट आयेगा, परदीप चला गया। पतिको अनुपस्थितिम मैंना सब आमोद प्रमोद त्यागकर उदास रहने लगी। गगापार प्ररये देश किसी राजाका सातन नामा लम्पट पुन या । उसने एक दिन आसेट के लिए जाते समय मैनाको अपनी अट्टाल्किापर बैठे देस लिया और उसपर आसक्त हो गया। उसे प्राप्त करने निमित्त उसने अपने मित्रसे परामगे किया और उसरे परामर्शसे रतना नामक मालिनको बुलाकर मैनाको पथभ्रष्ट परनेश यहा । मानिने इस कार्य पूरा करनेका बीडा उटाया । ___ मालिन सारी तैयारी कर मनाये महल में पहुँची। उसने मैनाको अनेक उप जना अपन पतिधीर कहा कि मैं तुम्हारी यचपनको धाय हूँ। तुम्दै मैने दूध पिलाया बारहमासा आता है। आरष्ट होकर नुम्हारे पास आयी हूँ! चाहा कि मैना अपनातपर विश्वास कर लिया और उसका आदर सत्कार किया। हम प्रारणरे समासानेरे पश्चात् मारिनने मैनासे मलिन वेशमें रहनेवा यादयी यथा आलाओलने ने मल्नि रहनेश कारण पतिका विदेश गमन बताया मैनाएर “ना प्रभाव नभूति प्राट की और आँसू बहाये । सिर सहानुभूति मैना अवस्था वर्णन कर मनायो उसरे सूनेपना स्मरण - 7 करनेगी चा करने लगी। मारव