पृष्ठ:चंदायन.djvu/४१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

किन्तु वह अपने पतिको अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल न हो सकी। विवश होकर उसने इस प्रकारकी उपेक्षाका कारण पूछा। अपनी पत्नी के प्रश्नको मुनकर वह रोने लगा और रोते रोते उसने अपनी काम शक्तिहीनताकी बात कह सुनायी। तब चनैनने पूछा-ऐसी अवस्था में मेरे उद्दाम यौवनका क्या होगा ? शिवधरने तत्काल विसी सत्पुरुपके संग जीवन व्यतीत करनेकी अनुमति दे दी। जब चनैन शिवधरके पाससे औट रही थी तो रास्तेमें, गॉवके समीप ही, रण्ठा चमार मिल गया। वह उसके सौन्दर्यपर मुग्ध हो गया और उससे प्रणय निवेदन करने लगा। चनैनने उसे टुकरा दिया तो वह बलात्कार करनेकी धमकी देने लगा। चनैनने इधर-उधर देखा पर गॉव निकट होनेपर भी कोई आता जाता दिखाई नहीं पडा, जिसे वह अपनी सहायताके लिए पुकारती । इस सकटसे बचनेका उपाय वह सोच ही रही थी कि उसका ध्यान निकट ही सड़े एक अत्यन्त ऊँचे इमलीके वृक्षकी ओर गया। उसपर इमलियोंके पके हुए गुच्छे लटक रहे थे। चनैनने कुछ सोचा और फिर मुस्कराकर बण्ठासे बोली-मुझे फुनगी (पडके सबसे ऊपरी भाग) पर लगी पकी इमलियाँ खिलाओ। इतना सुनना था कि बण्ठा निहाल हो गया और बिना कुछ सोचे समझे तत्काल अपनी पगडी और जूते उतार, मगन होता हुआ पेडके सिरेपर चढ गया और इमली तोडकर गिराने लगा। चनैनको अवसर मिला । उसने यण्ठाके जूते और पगडीको उठाकर दूर फेक दिया और स्वय भाग निकली। जब तक घण्ठा पेडसे नीचे उतरकर अपनी पगड़ी और जूतेको सँभाले, तब तक चनन महल में जा पहुंची। निराश घण्टा क्षुब्ध हो उठा और अगौरामें जाकर उत्पात मचाने लगा। लोरिक ने उसे समझानेकी बहुत कोशिश की पर बण्डा अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। तब रोरिक्ने बुद्ध होकर उसे युद्ध के लिये ललकारा । युद्ध में दण्टा मारा गाया। रण्ठाके मारे जानेकी खुशी में चनैनने भो का आयोजन किया और घण्ठाये विजेता लोरिवको विशेष रूपसे आमन्त्रित किया। जिस समय लोरिक भोजन कर रहा था, ऊपरसे चुछ तिनके आवर उसकी पत्तल्पर गिरे। लोरिकने आँस उठाकर ऊपर देखा। रूपसी चनैन अपने सतरवण्डे महल्के झरोखेपर सड़ी मुस्करा रही थी। उसे देखते ही लोरिक उसपर मुग्ध हो गया। दोनों में परस्पर बुछ सकेत हुआ। तदनन्तर दोनों एक दूसरेसे लुक छिपकर मिल्ने लगे। और एक दिन अधेरी रातमें दोनों अपना गाँव छोडकर भाग निकले और हरदीथान पहुँचे। हरदीथान श्रीनगरके मौचनि राजाके राज्यमें पड़ता था। वह राजा अत्यन्त प्रतापो था । ठिठरा नामक एक नाई उसका सेवक था। एक दिन अकस्मात् ठिठरा नाईने चनैनको देख लिया ! चनैना रूप देखते ही वह मूति हो गया। होश आनेपर वह मोचनि राजाचे पास पहुँचा और बोला-एक आदमी हौरिकः चन्द्रको चुराकर लाया है। आपकी सातो गनियाँ उस पद्के तालुओंकी धोवन भी नहीं है। यह सुनकर मोचनि राजाने चनैनको प्राप्त करने लिए पड्यन्त्र रचा।