पृष्ठ:चंदायन.djvu/४१५

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४०७ आशाके विपरीत मॉजरिने अपने सतीत्व अपहरणके इस पड्य को ताड लिया और तत्काल इसकी सूचना अपने सास ससुरको दे दिया। सूचना पाते ही मॉजरिके साथ उसकी कुमारी बहन लुरकी, राजल धोबी, बे और खुलेन सभी सझौलीके राजा (मेरिक)के पडाव पर जा पहुंचे और उसे युद्धके लिए ललकारने लगे। हलफार सुनकर जैसे ही लोरिक बाहर आया, गजलने लपक कर उसका हाथ नेत्रहीन दूबेको पक्डा दिया। हाथका स्पर्श होते ही वेको ज्ञात हो गया कि वह उसके बेटे लोरिकका हाथ है। अपनी इस धारणाको पुष्ट करनेके लिए उसने उसे अपने आलिंगनमे क्सकर आबद्ध कर लिया। वेके वन आलिंगनको सहन करनेकी क्षमता रोरिकरे सिवा क्सिीमें न थी। उसके आलिंगन पाशमें आबद्ध होकर भी जब लोरिक हसता ही रहा तो कुबेको निश्चय हो गया कि वह लोरिक ही है। और वह स्नेह के साथ उसका पीठ सहलाने लगा। स्नेहातिरेकमें खुलैन और दूबे दोनोंके नेत्रोंकी खोई हुई ज्योति लौट आयी। इस बीच मॉजरिफी बहन दुरकीने चनैनको जा एकदा और वह उसका प्राण देने जा ही रही थी कि इन्द्रजीत रोता हुआ माँजरिकी ओर मागा। माँजरिने आकर चनेको छुडाया। बोली-अपने प्रतिशोधके लिये किसी अबोध बालक माँका माण नहीं लिया जा सस्ता। तत्पश्चान सब लोग घर आये और मुख पूर्वक रहने लगे। रोरिकने अपने भाईका प्रतिशोध लेनेका निश्चय किया और राजा कौल्ह मकडाको मार डाला। यही नहीं, जितने भी अत्याचारी राजा थे, उन सबको यमलोक पहुँचा दिया। जब उससे लडने वाला कोई नहीं बचा तब उसने अपनी आराध्या भगवतीकी आश प्राप्त कर काशी करवट ले लिया। सुप्रसिद्ध पुराततत्वविद् अलेक्जेण्डर कनिंगहम ने अपने १८७० ८१ के उत्तरी और दक्षिणी भागकी यात्राका जो विवरण प्रस्तुस किया है उसमें उहोंने लोरिस चन्दायी कथा दी है जो उपर्युक्त कया से थोडा भिन्न है। उहोंने लिखा है कि उन्हें तिरहुत की यानामें हरघा बरवा का नाम बहुत मुनाई पडा। उन्हें उनके सम्बन्ध में जो जानकारी प्राप्त हुई उसके अनुसार हरवा-घरवा भाई भाई और जातिके दुहाध थे। वे नेउरपुरमै राज करते थे। वे बड़े ही लडाकू थे और उन्होंने बहुनसे राजाओंको लूर कर मार डाला था। उही दिनों लोरिक और सेउर (अथवा सिरक) नामक दो पड़ोसी राजा थे जो गौरामें रहते थे। रोरिक अपनी पत्नी माँझरयो स्याग कर चनाइनके साथ हरदी भाग गया। वहाँके राजा मल पारने, जो जातिमा अहीर था, उसका विरोध किया । दोनों में लड़ाई हुई। लोरिकने मल्पारको पराजित कर गिया । वदन्तर दोनों परस्पर मिन बन गये। १ आर्यालाजिकल सर्वे रिपोरं, एण्ड १६, १८८३, पृ० २७२८ । + - -